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________________ पास० 1 / 2/15-16 अर्थात् "पृथ्वी-मण्डल में प्रधान, गिरिराज (सुमेरु) के समान विशाल, देवताओं के मन में भी विस्मय उत्पन्न करनेवाला, भवन शिखरों से मण्डित तथा पृथ्वी- मण्डल के श्रेष्ठ पण्डित के समान गोपाचल नामक एक नगर कहा गया है ।" सुहनन्छ जरावर ण बुहयण जुहु णं सत्यत्यहिं सोहिउ जणमणु । मोहिउ णं वरणयरहँ एहु गुरु ॥ Jain Education International yungpoffint पण दि सिमि तिलकराजवि स आतार यम्बरछ पियवाला सामुदि क वियोग किया वरि विधानपरि Wood रयणावरु । इंदउरु || प Rakipa चाणक मासि विश विसर सवातवरणा परिवार भारसडिमा बही 1 / 3/17-18 अर्थात् "सुख-समृद्धि एवं यश के लिए यह गोपाचल रत्नाकर के समान आकर था, बुधजनों के समूहों से युक्त वह नगर मानों इन्द्रपुरी ही था शास्त्रार्थी से । सुशोभित तथा जन-मन को आकर्षित करनेवाले सर्व श्रेष्ठ नगरों का मानों यह गुरू ही था ।" ३१४ वहाँ के सामाजिक जीवन का भी वह सुन्दर वर्णन करता है । कवि के अनुसार वहाँ के आबाल-वृद्ध, नरनारी दुर्व्यसनों से कोसों दूर थे । प्रातःकालीन क्रियाओं से निवृत्त होकर वहां की नारियाँ सुन्दर वस्त्र धारणकर म पावरजसामानादिर मनोकलदिय स्त हरिया सिवनादिननयमि महाकवि रईकृत अपभ्रंश का एक अधावधि अरकाशित दुर्लभ प्रत्व, "निलट्ठ महापुराणपुरिस आवशदगुणालंकारु" के अन्तिम पृष्ठ को फोटो कापी For Private & Personal Use Only ज ratori www.jainelibrary.org
SR No.012001
Book TitleTirthankar Mahavira Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Malav
PublisherJivaji Vishwavidyalaya Gwalior
Publication Year
Total Pages448
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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