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________________ कृपा कीजिए 14 कवि रइधू ने कमलसिंह की यह बिना धागे से रत्नों की माला कोई गूंथ सकता है ? मार्मिक-प्रार्थना स्वीकार कर उसके निमित्त 'सम्मतगुण- बिना बुद्धि के इस विशाल काव्य की रचना करने में मैं णिहाणकव्व' नामक एक काव्य-ग्रन्थ की रचना करदी। कैसे पार पा सकूँगा ?" महाकवि का एक दूसरा भक्त था हरिसिंह साहू । उक्त प्रकार से उत्तर देकर कवि ने साहू की बात उसकी तीव्र इच्छा थी कि उसका नाम चन्द्र विमान में ___ को सम्भवतः टाल देना चाहा, किन्तु साहू बड़ा चतुर लिखा जाय । अतः वह कवि से निवेदन करता है-"हें था। अतः ऐसे अवसर पर उसने वणिक्बूद्धि से कार्य मित्र, मुझ पर अनुरागी बनकर मेरी विनती सुन लीजिए किया । उसने कवि को अपनी पूर्व-मैत्री का स्मरण एवं मेरे द्वारा इच्छित 'बलभद्र चरित' नामक रचना दिलाते हए कहा: "कविवर, आप तो निर्दोष काव्य लिखकर मेरा नाम चन्द्र-विमान में अंकित करा रचना में धुरन्धर हैं, शास्त्रार्थ आदि में निपूण हैं, आपके दीजिए।' हरिसिंह की यह प्रार्थना सुनकर कवि ने कई श्री मुख में तो सरस्वती का वास है। आप काव्यकारणों से अपनी असमर्थता व्यक्त करते हुए तथा प्रणयन में पूर्ण समर्थ हैं, अत: इच्छित-ग्रन्थ की रचना 'बलभद्र चरित' की विशालता का अनुभव करते हुए अवश्य ही करने की कृपा कीजिए।"18 अन्ततः कवि ने उत्तर दिया : उक्त ग्रन्थ की रचना करदी। घणएण भरइ को उवहि-तोउ । रइधू-साहित्य में वणित गोपाचल को फणि-सिरमणि पयडइ विणोउ। पंचाणण-मुहि को खिवइ हत्थु । रइधू-साहित्य में गोपाचल का बड़ा ही समृद्ध विणु सुत्ने महि को रयइ बत्थु । वर्णन मिलता है। कवि ने उसकी उपमा स्वर्गपुरी, इन्द्रपुरी, एवं कुबेरपुरी से दी है, किन्तु प्रतीत होता है विणु-बुद्धिए तहँ कव्वहं पसारु । कि उसे इस तुलना से भी सन्तोष नहीं है, क्योंकि एक विरएप्पिणु गच्छमि केम पारु । सन्त कहाकवि की दृष्टि में ज्ञान एवं गुरू ही सर्वोपरि होते हैं, भौतिक समृद्धि तो उनके समक्ष नगण्य है । अतः वह बलभद्र० 1/4/1.4 गोपाचल को 'नगरों का गुरू' अथवा 'पण्डित' घोषित अर्थात्-“हे भाई, बलभद्र-चरित का लिखना करता है । वह कहता है:सरल कार्य नहीं। उसके लिखने के लिए महान् साधना, क्षमता एवं दाक्ति की आवश्यकता है। आप ही बताइये महिवीढ़ि पहाणउँ णं गिरिराणउँ । कि भला घड़े में समस्त समुद्र-जल को कोई भर सकता सुरहँ वि मणि विभउ जणिउँ । है? साँप के सिर से मणि को कोई ले सकता है ? कउसीसह. मंडिउ णं इहु । प्रज्ज्वलित पंचाग्नि में कोई अपना हाथ डाल सकता है ? पंडिउ गोवायलु णामें भणिउँ । 14. सम्मतगुण 1/15/1-6. 15. बलहद्दचरिउ 1/4/6-12, 16. बलहद्द० 1/5/5-6. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012001
Book TitleTirthankar Mahavira Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Malav
PublisherJivaji Vishwavidyalaya Gwalior
Publication Year
Total Pages448
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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