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तीर्थंकर महावीर के महानिर्वाण की पच्चीसवीं - प्रथम दृष्टिपात ही यह बता देता है कि इसकी सामग्री शती-पुति के अवसर भारत में ही नहीं संसार भर में कितनी गहन, शोधपूर्ण, बहुआयामी और स्थायी महत्व समारोहों का आयोजन संपन्न हुआ, उनके धमिक- की है, निस्संदेह इसका आयोजन, संकलन और प्रकाशन नैतिक मूल्यों के पुनगवलोकन का उपक्रम किया गया श्रम और धीरज का परीक्षाकाल रहा होगा। अत: इस और उनके द्वारा प्रदशित जीवन-पद्धति की समकालीन सफल परिणति के अवसर पर मैं इस समायोजन से संदभों में प्रासंगिकता एकबार फिर से केन्द्रीभूत चिन्तन सम्बद्ध समस्त सहयोगियों के प्रति साधुवाद संबोधन के का विषय बनी। वस्तुत: यह हम सबके लिए श्लाघा अवसर को नहीं छोड़ना चाहता । का ही विषय है कि जीवाजी विश्वविद्यालय, ग्वालियर
मुझे विश्वास है कि प्रस्तुत स्मृतिग्रंथ जीवाजी का भी इस सबमें एक विनम्र योगदान रहा । मेर विश्वविद्यालय द्वारा तीर्थकर महावीर की स्मति में पूर्ववर्ती कुलपति श्री गोविन्द नारायण टन्डन के कार्य- ..
समर्पित एक ऐसी श्रद्धांजलि है, जो ज्ञानराशि के संचित काल में यह आयोजन संपन्न हए और उनके तथा उनके
कोष में अपना योगदान सार्थक करेगी और जिसे प्रबुद्ध सहयोगियों के परिश्रम, लगन तथा उत्साह के प्रमाण
जनों की सराहना मिलेगी। तीर्थ कर महावीर के के रूप में प्रस्तुत स्मति ग्रंथ इतने सुन्दर स्वरूप में आपके
चरणों में इस श्रद्धा सुमन को आप तक भेजते हए मुझे हाथों में सोंपने का दायित्व अनायास ही सद्भाग्यवश
इतना ही निवेदन करना है। मझे मिला है, जो मेरे लिए व्यक्तिगत प्रसन्नता और सुख का कारक है। स्मृति ग्रथ की विषय सूची पर
तीर्थकर महावीर निर्वाण दिवस वीर निर्वाण सम्वत् २५०४ दिनांक ११ नवम्बर, १९७७
हरस्वरूप
कुलपति जीवाजी विश्वविद्यालय, ग्वालियर
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