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आमुख
भारत की गौरवशालिनी सांस्कृतिक संरचना की निर्मिति में सहस्राद्वियों की अविच्छिन्न परम्परा के तत्व सन्निहित हैं। संभवतः संसार के अन्य किसी भी देश का इतिहास हमारी तरह सांस्कृतिक सातत्य की विशिष्टता से अनुप्राणित नहीं है। यही कारण है कि आर्थिक भौतिक निर्धनताओं के संत्रास में भी भारत भूमि की अस्मिता अपराजित और गर्वोन्नत रहती चली आई है, और तमस् - प्रताड़ित मानवता ने सदैव ही उसकी ओर आस्था तथा विश्वास की प्रकाश किरणों के लिए आशा मरी दृष्टि से देखा है ।
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परस्परोपका
भारत का वैविध्य पूरित सांस्कृतिक व्यक्तित्व यों तो अनेक संश्लिष्ट तत्वों की पारस्परिक क्रिया-विक्रिया का परिणाम है, तथापि इसकी समग्र रचना को सुदूर अतीत में दो महापुरुषों ने सर्वाधिक प्रभावित किया, वह थे महावीर और गौतम बुद्ध, जिनके उदात्त चिन्तन के संस्पर्श भारतीय मनीषा पर इतने सुस्पष्ट और स्थायी थे कि शताब्दियों बाद, एकदम भिन्न और वैज्ञानिक - आधुनिक संसार में एकबार फिर व्यापक सर्वानुमति और स्वीकृति प्राप्त करने वाले महापुरुष महात्मा गांधी के व्यक्तित्व में उसी चिन्तन का परावर्तन परिलक्षित हुआ सांस्कृतिक सातत्य का यह अनुपम
उदाहरण था।
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