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________________ कामाभिनिवेशाः ॥२३॥ क्षेत्रवास्तुहिरण्यसुवर्णधनधान्यदासीदासकुप्यप्रमाणातिक्रमाः ॥२४॥ अधिस्तिरव्यतिक्रमक्षेत्रवृद्धिस्मृत्यन्तर्धानानि ॥ २५ ॥ आनयनप्रेष्यप्रयोगशब्दरूपानुपातपुद्र्लक्षेपाः ॥२६॥ कन्दर्पकौत्कुंच्यमौखर्यासमीक्ष्याधिकरणोपभोगाधिकत्वानि ।२७ १ इस सूत्र के स्थान में कोई-'परविवाहकरणेत्वरिकापरिगृहीतापरिगृहीतागमनानङ्गक्रीडातीवकामाभिनिवेशः( शाः) ऐसा सूत्र मानते हैं, ऐसा सिद्धसेनका कहना है । यह सूत्र दिगम्बरीय पाठ से कुछ मिलता है । संपूर्ण नहीं । देखो ऊपर की टिप्पणी। कोई लोग इसी सूत्र का पदविच्छेद 'परविवाहकरणम् इत्वरिकागमनं परिगृहीतापरिगृहीतागमनं अनङ्गक्रीडा तीवकामाभिनिवेशः' इस तरह करते हैं यह बात सिद्धसेन ने कही है। यह आक्षेप भी दिगम्बरीय व्याख्याओ पर हो ऐसा मालूम नहीं होता। इस प्रकार पदच्छेद करने वाला 'इत्वरिका' पद का जो अर्थ करता है वह भी सिद्धसेन को मान्य नहीं । २ -स्मृत्यन्तराधानानि -स. रा. ग्लो० । ३ किसी के मत से 'आनायन' पाठ है ऐसा सिद्धसेन ४ पुद्गलप्रक्षेपाः -भा० हा० । हा. वृत्ति में तो 'पुद्गलक्षेपाः ही पाठ है । सि-वृ० में पुद्गलप्रक्षेप प्रतीक है। ५ -कौकुच्य -भा० हा० । ६ -करगोपभोगपरिभोगानर्थक्यानि -स० रा. लो० ।
SR No.011620
Book TitleTattvarthadhigam Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1940
Total Pages588
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size14 MB
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