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योगशास्त्र.
(श्रने तेथी तेणे जाण्युं के ) आ प्रजु पेहेलां वजनान नामें चक्र वर्ती हता, तथा हुं तेनो सारथि हतो, तथा तेमनी पाबल में पण दीक्षा लीधी हती. इत्यादि तेणे जाण्यु, पनी जाणेल के निर्दोपनिदाना दाननो विधि जेणे, एवा ते श्रेयांसें हर्षसहित ताजो थावेलो शेलडीनो रस वोराव्यो. ते वखतें घणो एवो ते रस प्रजुना इस्तपात्रमा माइ गयो, पण श्रेयांसना हृदयमां हर्ष तो मायोज नहीं !!! पडी ते रस प्रजुना हस्तमां थीजी जश् उंची शिखावालो थर स्थिर रह्यो, कारण के, प्रजुनो प्रजाव न चिंतवी शकाय तेवो होय . एवी रीते प्रजुए ते रसथी पारणुं कर्यु, अने देव, दानव तथा माणसोनां नेत्रोए, प्रजुना दर्शनरूपी अमृतथी पारणुं कर्यु !!! पनी देवोए आकाशमां, मेघोनी पेठे इंजिनाद कर्यो, तथा जलवृष्टिनी पेठे रत्न अने पुष्पोनो वर्षाद वरसाव्यो. पनी प्रनु बाहुबलीनी तक्षशिला नामें नगरीप्रत्ये गया, तथा त्यां बाहारना उद्यानमा एक रात्रिनी प्रतिमाथी रह्या. सवारमां हुँ प्रजुना दर्शनथी मारा लोकोने पवित्र करावीश, एम विचारता बाहुवतिने ते रात्रि एक माससरखी जाती हवी. पड़ी जेवो प्रजातमां वाहुवति त्यां गयो, तेटलामा प्रजु तो बीजी जगोए चाल्या गया, तथा तेथी चंअविनाना श्राकाशसर स्वामिविनानुं तेणे ते उद्यान जोयु. जषर (खारवादी) नूमिमां वावेला वीजनी पेठे मारो मनोरथ नाश पाम्यो, माटेथरे ! हुं महाप्रसादी बुंएवी रीते ते पोतानी निंदा करवा लाग्यो. पड़ी ज्यां प्रजुनां पगलां पडेलां हता, त्यां तेणें रत्नोथी हजार दांतानुं वीजा सूर्य सरखं धर्मचक्र बनाव्यु. विविध अनियहवाला, तथा धर्मने जाणनारा ते प्रचार्यदेशनी पेठेज म्लेबदेशमां पण विहार करवा लाग्या, कारण के योगियो तो समजाववाला होय बे. त्यारथी मांडीने पापरूपज डे, कार्यों जेनां, एवा ते अनार्योने धर्मनी आस्तिक बुद्धिथी दृढ क्रियाउनुं चेष्टित थयु. एवी रीते एक हजार वर्षसुधी विहार करता करता प्रजु, पुरिमतालनामें नगरमां पधार्या.त्यां ईशान खुणमा रहेला शकटानन नामें वनमां प्रनु, वडनी नीचे, अम करीने प्रतिमाथी रह्या. तथा अपूर्वकरणना क्रमथी पकश्रेणिपर चडीने, शुद्ध शुक्लध्यान ध्याववा लाग्या. अने तेथी प्रजुनां धातिको वादलांनी पेठे दूर थयां, अने तेथी "केवल