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यागशास्त्र. अर्थः-फफ, विग्रुप (थुक) मेल, तथा हाथ थादिकनु थाप, ए सवेनुं औषधिनी छिरूप थर्बु, तथा इंजियोना जुदा जुदा विषयोनी प्राति, ए सघj, योगनुं विलसित (चरित्र ) बे.
टीका:-" महर्डि" शब्द कफआदिक सर्वने जोडी लेवो. कफ, श्लेम श्रादिकथी मांडी मलमूत्र आदिकनुं कारण करवू; मेल एटले कान, दांत, नाक, श्रांख तथा जीन आदिथी, तथा शरीरथी उत्पन्न श्रयेलो मेल जाणवो. "श्रमर्श" एटले हाथ श्रादिकथी स्पर्श करवो ते, एवी रीते विष्ठा, मूत्र, केश, नख आदिक अत्रे कहेला अने नहि कहेला सघला पदार्थों योगना प्रजावथी, महा शद्धिवाली औषधियोरूप थाय ने. अथवा “महर्डि" शब्दनो जूदो अर्थ करीयें, तो " श्रणिमा" आदिक जाणी लेवी; वली जुदी जुदी इंजियोना विषयोनी प्राति पण योगथी थाय बे. आ सघढुं योगर्नु माहात्म्य जे. अहीं सनत् कुमारनी कथा कहे .
योगना माहात्म्यथी योगियोना कफना बिर्ड, सनत्कुमारादिकनी पेठे सघला रोगोने नाश करनारा थाय . अगाज, हस्तिनापुर नगरमां ब खंग पृथ्वीने जोगवनार, सनत्कुमार नामें चोथो चक्रवर्ती भयो हतो. को एक दहाडे सुधर्मा सजामां, आश्चर्ययुक्त थर, झें तेना अत्यंत रूपनुं वर्णन कर्यु, के, कुरुवंशमां शिरोमणि, एवा सनत्कुमार राजा, जे रूप , तेवु रूप देव, माणस के कोश्मा नथी एवी रीतना रूपनीप्रशंसाने नहीं मानता, विजय अने वैजयंत नामना बे देवो पृथ्वीपर आव्या, पडी तेर्ड, तेनुं रूप जोवा वास्ते, ब्राह्मणोनुं रूप लश्, राजाना मेहेलना वारणा पासे आवी उना. ते वखते सनत्कुमार पण सघलां कपडां उतारिने स्नान करवा माटे शरीरे विलेपन करावता हता. त्यारे पोलीथाए, तेने बहार उन्जेला जणाववाथी, ते न्यायी राजाए, ते वखते पण ते ने
आववा दीधा. पनी सनत्कुमारने जोश्ने, आश्चर्यथी प्रफुल्लित श्रयेल बे, मन जेनां एवा ते मस्तक धुणावता थका, विचारवा लाग्या के, आनुं कपाल तो आग्मना चंने दूर करना बे, तथा नीलकमलनी कांतिने जितनारां तेनां लोचनो कानसुधि पहोचेलां . वली आना होगे तो पाकां बिंबफल (पाकेलां घोला)नी कांतिने जितनारा , तथा कानो