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वितीयप्रकाश. . नारा, अने तेथी सघलाउँने मारी नाखवा जोश्य, अने एम करवाथी तो, वटावनी श्वा करतां थकां, मूलपुंजी खोवाजेवू थयु.अने धर्म तोअहिंसामय बे,ते हिंसाथी केम थाय ? कारण के, पाणीमा उत्पन्न थतां कमलो,अग्निमांथीउत्पन्न थतांनथी. वली पापोना हेतुरूपजे हिंसा,ते पापोनोशी रीतेनाश करे ? कारण के, मृत्युना हेतुरूप जे फेर, ते जीवितमाटे शी रीतें थाय ? वली केटलाको एम कहे जे के, जुःखी जीवोनें उःखमांधी बोडाववामाटे मारी नाखवा, ते कडेवू पण अयुक्त , कारण के, तेवा जीवो मरायाबाद जो नरकगामी थाय, तो तेमने खल्प कुःखमांथी बोडावी अधिक :खमां घालवा जेवू थाय; माटे एवी रीतनां कुतीथिनां वचनोने तजवां. वली नास्तिक वादी कहे जे के, आत्माज नथी, अने तेनाविना हिंसाज कोनी थाय ? अने हिंसानुं फल पण कोने मले ? जेम पीगं (पिष्ट) आदिकथी मदिरानी उत्पत्ति थाय बे, तेम पंचनूतथी चैतन्यशक्ति थाय बे, अने ज्यारे ते जूतोनो नाश थाय , त्यारे जीवनुं मृत्यु थयु, एम कहेवाय बे; आत्मानो अनाव होते बते, तेना मूलरूप जे परलोक, ते पण घटे नहीं; अने एवी रीते परलोकनो पण अनाव थवाथी पुण्य पापनी वात करवी, तेज वृथा बे. वली तप, संयम आदिक तो लोगोनी वंचनारूप ले. हवे तेनो उत्तर कहे . देहमा रहेलो जीव, स्वसंवेदनताथीज सिक पाय बे; वली हुँ सुखी ढुं, उःखी , इत्यादि तेनी प्रतीति बे; "हुँ घडाने जाणुं बु" एम कहेवामांज कर्म, कर्त्ता, अने क्रिया ए त्रणे जणाय जे; ते उतां कर्त्ताने शा माटे निषेधवो पडे ले ? वती जो शरीरने कर्ता माने, तो ते अचेतन होवाथी, कर्ता गरी शके नहीं, श्रने जूत अने चैतन्यना संयोगथी जो माने, तो चेतनने असंगतपणुं आवे जे; वली तेमने एक कपिणानो अनाव होवाथी, में आ सांजव्युं, में दीवु, में स्पश कयु, में सुंघ्यु, में चाख्युं, इत्यादि बोलq तेमने घटी शके नहीं. माटे एवी रीतें जेम स्वसंवेदनथी पोतानां देहमा आत्माने अस्तिरूपें मान्यो, तेम परना देहमां पण अनुमानथी जाणवो. वली पोताना देहमां बुद्धिपूर्वक थती क्रियाने जोश्ने, बीजाऊमां पण तेवीज रीतें जाणवी; एम प्रमाणथी सिद्ध भएली वातने कोण निवारी शके डे ? माटे एवी रीते जीवनी सिद्धि होते बते, परलोकने मानवो ते पुर्घट नथी; अने