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प्रथमप्रकाश.
यथावदतियौ साधौ दीने च प्रतिपत्तिकृत् ॥ सदाननिनिविष्टश्च पक्षपाती गुणेषु च ॥ ५३ ॥ अदेशाकालयोश्चर्यं त्यजन्जानन् बलावलं ॥ वृत्तस्थज्ञान-दानां पूजकः पोष्यपोषकः ॥ ८४ ॥ दीर्घदर्शी विशेषज्ञः कृतज्ञोलोकवल्लभः ॥ सलकः सदयः सौम्यः परोपकृतिकर्मतः ॥ ५५ ॥ अंतरंगारिषडुर्गपरिहारपरायणः ॥ वशीकृतेंप्रियग्रामो गृही धर्माय कल्पते ॥ ५६ ॥
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अर्थ :- न्यायथी मेलवेल बे धन जेणे, तथा उत्तम श्राचारोनी प्रशंसा करनार, सरखा कुलशीलवाला श्रन्यगोत्रिर्ड साथे विवाह करनार, पापथी. बीतो, प्रसिद्ध देशचालने अंगीकार करतो, कोश्नो पण अवर्णवादी नहीं, तेम राजाउंनो तो विशेषे करीनें नहीं, एवो, अतिगुप्त नही तथा अति प्रगट नही, एवा सारा पडोशीवाला, तथा घणां द्वारविनाना घरमा रहेनारो, सदाचा रिसाये संग करनारो, मातपिताने पूजनारो, उपडववाला स्थानकने तजनारो, निंदनीय काममां न प्रवर्त्तनारो, आवक प्रमाणे खरच करनारो, पैसा प्रमाणे वस्त्रादि पेढेरनारो, बुद्धिना श्राव गुणोवालो, हमेशां धर्मदेशना सांजलनारो, अजीर्ण वखते जोजननो त्यागी, कवसरे शांतताथी जोजन करनार, एक बीजाने बाधाविना त्रण वगने साधतो, शक्ति प्रमाणे, अतिथि, साधु ने दीननी सेवा करनार, हमेशां सदाग्रही, गुणोमां पक्षपाती, प्रदेश, अने अकालना श्राचारने तजतो, वलाबलने जाणतो, व्रतधारी तथा ज्ञानीने पूजनारो, तथा पोषण करवालायकनुं पोषण करनारो, दीर्घदृष्टिवालो, विशेष जाणनार, कृतज्ञ, (करेला गुणउपकारने जाणनार) लोकोने वल्लन, लावालो, दयावालो, सौम्य, परोपकार करनार, अंतरंग रूप काम क्रोधादिकषायरूप ब वैरीने नाश करवामां तत्पर, तथा इंद्रियोने वश करनार, एवो माणस, गृहस्थ धर्मने लायक बे. खामिद्रोह, मित्रद्रोह, विश्वासघात, तथा चोरीयादिकथी उपार्जन कराता निंद्य धनना त्यागथी, पोतपोतानी जा