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________________ आचारचिन्तामणि-टीका अध्य.१ उ.१ सू.६. कर्मसमारम्भः कुर्वतश्चापि समनुज्ञो भविष्यामि, इति । अत्रापि 'च'-शब्दोपादानेन भविष्यकालिककृतकारितक्रियाद्वयस्यापि ग्रहणम् । 'समनुज्ञः' इत्यस्य समनुज्ञाता अनुमोदयितेत्यर्थः । तथा च-(१) अहमन्यस्य कुर्वतोऽनुमोदयिता भविष्यामि, (२) स्वयमहं करिष्यामि, (३) अहं कारयिष्यामि, इति भेदत्रयं क्रियायाः भवति । कुर्वतश्चापीत्यत्र 'अपि'-शब्दोपादानेन तासां नवानां क्रियाणां मनोवाकायभेदेन सप्तविशतिर्भङ्गा भवन्ति । आत्मवाचकमहमिति पदं पुरस्कृत्य 'अकार्षम्' इत्यादिक्रियापदोपादानात "सर्वाः क्रिया आत्मपरिणामरूपाः" इति वोधितम् । एतेन "आत्मा निष्क्रियः" इति सांख्याघभिमतं निराकृतम् । . 'यावि' शब्द में जो 'अपि' पद है, उस से यह समझना चाहिए कि-इन नौ क्रियाओं के मन वचन और कायके भेद से सत्ताईस भेद हो जाते हैं। अर्थात् पूर्वोक्त नौ क्रियाएं मन से की जाती हैं. वचन से की जाती हैं, और काय से भी की जाती है, अतः उनके सत्ताईस भेद हो जाते हैं। आत्मा के वाचक अहम् (मै) पदको प्रधान करके 'अकार्षम्' इत्यादि क्रियापदों का ग्रहण करने से यह सूचित किया गया है कि ये सब क्रियाएँ आत्मा का ही परिणाम हैं । इस सूचना से आत्माको निष्क्रिय मानने वाले सांख्य आदि मतों का निराकरण हो गया है। 'यावि' शभा २ 'अपि' यह छ तथा से समान से न ક્રિયાઓના મન, વચન અને કાયાના ભેદથી સત્તાવીશ ભંગ થાય છે. અર્થાત્ પૂર્વોક્ત નવી ક્રિયાઓ મનથી કરી શકાય છે. વચનથી અને કાયાથી પણ કરી શકાય છે. તેથી તેના સત્તાવીશ ભેદ થઈ જાય છે. मात्माना पाय 'अहम् ' ई-पहने प्रधान राभान 'अकार्षम् ' माहि छियाપદના ગ્રહણ કરવાથી એ સૂચન કરવામાં આવ્યું છે કે-એ સર્વ ક્રિયાઓ આત્માનું જ પરિણામ છે. આ સૂચનથી આત્માને નિષ્ક્રિય માનવાવાળા સાંખ્ય આદિના મતનું . निरा४२ थ६ गयु छ. . .
SR No.011616
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1958
Total Pages801
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size35 MB
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