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________________ ૧૩૭ ૩૪ દીવૈતાઢયાનુ વર્ણન अवतरणः- हुवे ३४ दीर्घवैताढ्यनु स्व३५ मा ४ गाथामा अडेवाय छे-पुव्वावरजलहिंता, दसुच्चदसपिहुलमेहलचउक्का । पणवीसुच्चा पन्नास तीस दस जोअण पित्ता ॥ ७९ ॥ वेहिं परिरिकत्ता, सखयरपुरपन्नसट्ठिसेणिदुगा | सदिसिंदलोगपालोव भोगिउवरिल्ल मेहलया ॥ ८० ॥ दुदु खंड विहिअ भरहे - रवया दुदु गुरुगुहा य रुप्पमया । दो दीहा अड्डा, तहा दुतीसं च विजयसु ॥ ८१ ॥ णवरं ते विजयंता, स खयरपणपन्नपुर दुसेणीआ । एवं खयरपुराई, सगतीससयाई चालाई ॥ ८२ ॥ शब्दार्थ: पुव्व अवर-पूर्व भने पश्चिम जलहि अंता-समुद्रना संतवाणी दस उच्च - १० योनी दस पिहुल - १० न पडेगी मेहलचउका - यार मेणसावाजा परिक्खित्ता-वीटायला स-सहित खयरपुर- फेयरनां नगरी; विद्याधरनां નગર पन्नसट्टि - ५० मने ६० सेणि दुगा शिवाजा दुदु खंड मे मे विलाग विहिअरेला गुरुगुहा - भोटी गुवाजा १८ पणवीस उच्चा-पशीस योजन या पन्नास-पास योभन तीस-त्रीस योजन दस जोअण-हस योजन पिहुत्ता - पडेगा एवाजा सविसि - पोतपोतानी द्विशिना इंद लोगपाल - न्द्रना सोयागने उपभोगी - उपलोग योग्य उवरिल्ल - उपरनी मेहलया भेजावाजा हा अड्डा - दीर्घ वैताढ्य दुतीसं-त्रीस वैताढ्य विजसु मत्रीस विन्न्योभां
SR No.011562
Book TitleLaghu Kshetra Samasa athwa Jain Bhugol
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri, Pratapvijay, Dharmvijay
PublisherMuktikamal Jain Mohan Mala
Publication Year1931
Total Pages669
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size22 MB
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