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परिशिष्ट (७)
महिपति मूक्या मेवडा, च्यारे चतुर सुजाण ।
पतसाही जण वर्या, पहुता गुरु मुलताणि ॥३॥ चाल-मुलताण मंडल मोटइ परि मंडयु, कीधा तोरण सात ।
दलारणभद्रतणी परि वंदइ, श्रीसंघ सुगुरु विख्यात ॥४॥ मीर मल्लिक खुदा सिम खोजा, आव्या सनमुख वाक। जयजयकार हुया जगि सघलइ, याज्या गहिर निसाण ॥५॥ संघसमवाय कियउ पइसारु, राख्यउ महीयलि नाम । आदर अधिक अमारि पलाई, मास दिवस लगि ताम ॥६॥ संवत सोल बाघनइ वरसइ, माहसुदइ तिथि बारसीत । जिनदत्तसूरि कुशल गुरु समरी, माणिक्यसूरि सुधा सीत ॥७॥ अठम भत्त करी आराधइ, पंच पीर सुभ ध्यान । श्रावक विबुध करइ तिहां करणी, पूजा प्रमुख प्रधान ॥ ८॥ सुविहित साधुसिरोमणि मुनिवर, श्रावकनुं परिवार । पातसाहि आदेसी बइठा, नाघा नदियमझार ॥९॥ ततखिण ध्यान धरतां आया, पंचपीर तिण ठाणि । गाज बीज आडंबर मंड्यु, न चल्युं सूरि सुझाणि ॥ १०॥ ध्यानबलइ गुरुसानिधि साध्या, पंचपीर तिणवार । तब तूठे वर दीधा पंचे, जंपइ जय जयकार ॥ ११॥ अतिशइ देखि तिहां कणि अधिकउ, लोकतणइ मनि भायउ। झगमग दीप्ति थई दीपकनी, रामा रंगि वधायउ ॥ १२॥ पंच नदी साधी संघकाजइ, पूगी मनोरथमाला। दान पुण्य संघइ तिहां कीधा, जाणइ बाल गोपाला ॥ १३ ॥ उदय कीधउ खरतर जिनशासनि, उदयउ जिनचंद । अधिक उदय प्रतपउश्रीसुहगुरु, जां लगि ध्रुव रवि चंद ॥१४॥ सादर सुंदर अति आडंबर, उच्च नयर गुरु आया।
पारख लखइ प्रमुख चांपसी, पइसारइ जसु पाया॥१५॥ राग सोरठी-आज उछरंग आणंद उलट घj,
आज सुधारसमेह वूठउ।