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________________ યુગપ્રધાન જિનચંદ્રસૂરિ 30७ जुगप्रधान गुरु गच्छ खरतर धणी, रि जिनचंद जु आज दीठउ ॥१६॥आज० ॥ पंचनदी साधिनइ नयर देराउरई, विहरता साधुसु मुगुरु आयु । नाम मंत्राक्षर ध्यान धरतां निसंदे, कुशलगुरु दरसण वेगि पायु ॥ १७॥ आज० ॥ श्रीजिनमाणिफसूरि गुरु वंदिया, नरहर हरखिया भविक प्राणी। जेसलमेर गढ पूज्य पधारीया, छत्रपति समानी भीम बंदीया ॥ १८॥ आज०॥ पाजि गजराज नरराजमुं परिवर्यु, आधीयु भीमजी यदु दियाजद । संघपति राइचंद अधिक उच्छ्य कियु, घरि घरि मंगलतर वाजइ । अनुकमइ मरुधरा देसमाहि विचरना, नयर अहिलपुर सुगुर आवइ ॥ १९ ॥ आज !! पृरय पोल सुममा मारि आपा, गरि निष्पंदम जस जग पाय॥२॥ आज आरिधा भी साधानी पुरी, पाराए मरीया मारी। संघसहित चिरकाल नियंदा थति काला दुपद गमतरी . !
SR No.011554
Book TitleYuga Pradhan Jinachandrasuri
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDurlabhkumar Gandhi
PublisherMahavirswami Jain Derasar Paydhuni
Publication Year
Total Pages444
LanguageGujarati
ClassificationSmruti_Granth
File Size14 MB
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