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________________ 3०६ परिशिष्ट (७) महिपति मूक्या मेवडा, च्यारे चतुर सुजाण । पतसाही जण वर्या, पहुता गुरु मुलताणि ॥३॥ चाल-मुलताण मंडल मोटइ परि मंडयु, कीधा तोरण सात । दसारणभद्रतणी परि वंदइ, श्रीसंघ सुगुरु विख्यात ॥४॥ मीर मल्लिक खुदा सिम खोजा, आव्या सनमुख वाक । जयजयकार हुया जगि सघलइ, याज्या गहिर निसाण ॥५॥ संघसमवाय कियउ पइसारु, राख्यउ महीयलि नाम । आदर अधिक अमारि पलाई, मास दिवस लगि ताम ॥६॥ संवत सोल बापन्नइ वरसइ, माहसुदइ तिथि बारसीत । जिनदत्तसूरि कुशल गुरु समरी, माणिक्यसूरि सुधा सीत ॥७॥ अठम भत्त करी आराधइ, पंच पीर सुभ ध्यान । श्रावक विबुध करइ तिहां करणी, पूजा प्रमुख प्रधान ॥८॥ सुविहित साधुसिरोमणि मुनिवर, श्रावकनुं परिवार । पातसाहि आदेसी बइठा, नाघा नदियमझार ॥९॥ ततखिण ध्यान धरंतां आया, पंचपीर तिण ठाणि । गाज वीज आडंबर मंड्यु, न चल्युं सूरि सुझाणि ॥ १०॥ ध्यानबलइ गुरुसांनिधि साध्या, पंचपीर तिणवार । तब तूठे वर दीधा पंचे, जंपइ जय जयकार ॥ ११ ॥ अतिशइ देखि तिहां कणि अधिकउ, लोकतणइ मनि भायउ। झगमग दीप्ति थई दीपकनी, रामा रंगि वधायउ ॥ १२॥ पंच नदी साधी संघकाजइ, पूगी मनोरथमाला। दान पुण्य संघइ तिहां कीधा, जाणइ बाल गोपाला ॥ १३ ॥ उदय कीधउ खरतर जिनशासनि, उदयउ जिनचंद। अधिक उदय प्रतपउ श्रीसुहगुरु, जां लगि ध्रुव रवि चंद ॥१४॥ सादर सुंदर अति आडंबर, उच्च नयर गुरु आया। पारख लखइ प्रमुख चांपसी, पइसारइ जसु पाया॥१५॥ राग सोरठी-आज उछरंग आणंद उलट घj, आज सुधारसमेह वूठउ।
SR No.011554
Book TitleYuga Pradhan Jinachandrasuri
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDurlabhkumar Gandhi
PublisherMahavirswami Jain Derasar Paydhuni
Publication Year
Total Pages444
LanguageGujarati
ClassificationSmruti_Granth
File Size14 MB
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