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________________ યુગપ્રધાન જિનચંદ્રસૂરિ 300 ऋमि ऋमि सहगुरु विचरतां, आया श्रीमुलताणई रे। : । अति उच्छच आडंबरइ, जयजयकार वखाणई रे ॥१४॥ श्रीजिण ॥ थो(घो)रवाड नानिग तणा, राजा सीमा रंगई रे। पंचनदी साधण तणी, देई खमासण चंगई रे ॥ १५॥ श्रीजिण० ॥ शुभ दिवसइ मुलताणथी, पांगुरिया गुरुराया रे । संघसहित हिव अनुक्रमइ, पंचनदी तटि आया रे ॥१६॥ श्रीजिण०॥ चंदवेली पत्तन भलइ, उतरीया शुभ ठामई रे।। गुणरागी श्रावक भला, सावधान गुरु कामई रे ॥ १७॥ श्रीजिण० ॥ हाजी फते आलम खान, समाइल देर रे । फतेपुर किहरीरना, उच्च. मरोट संमेला रे ॥१८॥ श्रीजिण० ॥ सीतपुरी उवाबडा, घल्ल जजेवाहण रे। जेसलगिरि देराउरा, भरकर भुट्टे वाहण रे ॥ १९॥ श्रीजिण०॥ पइंत्रीसां गामां तणा, संघ सहु तिहां मिलिया रे। सहगुरु भावइ वांदतां,संघ मनोरथ फलिया रे ॥ २० ॥ श्रीजिण ॥ आंविल तप जप साधना, करी आतमसुद्धि सारू रे पूरवविधि सवि साचवी, करी अट्ठम तप वारू रे ॥ २१॥ श्री० ॥ सोलह सइ वावन (१६५२ ) समइ, माहसुदीइ शुभमासई रे । वारसि तिथि पुष्यारकइ, सुंदर मन उल्लासई रे ॥२२॥ श्रीजिण०॥ धूप जाप वलिवाकुला, श्रावक सयल करेई रे। पाठक वाचक मुणिवरू, श्रावक साथइ लेई रे ॥ २३॥ श्रीजिण० ॥ जपता निजगुरु देवता, वइठा बेडी मांहई रे। वेडी हिव चालती, आई नदी प्रवाहई रे ॥२४॥ श्रीजिण ॥ पंचनदी विच पामीनइ, मंत्र जपइ तिणि वेला रे। सूर वीर साहस पणइ, श्रावक साधु समेला रे ॥२५॥ श्रीजिंण ॥ भीम भयंकर अध रातइ, पंचनदी जल पूरई रे। निरधारी बेडी तिहां, राखी लोक हजूरई रे ॥२६॥ श्रीजिण०॥
SR No.011554
Book TitleYuga Pradhan Jinachandrasuri
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDurlabhkumar Gandhi
PublisherMahavirswami Jain Derasar Paydhuni
Publication Year
Total Pages444
LanguageGujarati
ClassificationSmruti_Granth
File Size14 MB
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