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યુગપ્રધાન જિનચંદ્રસૂરિ
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२५ इलाहिमें तपागच्छी जसू वनीयेने उसी पहाड़ पर किलेमें १ देहरा वनवाया।
सन् ३० (३५-७) इलाहि में खरतर महेता सारंग दास जो कि एलोर (?) के जगहपर वादशाहके दरवारमें मिलाथा, खिरनी (रायण)के दरख्तके नीचे वडे देहरेके पीछे उसी किलेमें ४ दरवाजेवाला मंदिर बनवाया।
सन् ३६ सहरयूर इलाहि-अकवरीमें गिरनार-सतरंजा और पालीताने के सव देहरोंकी पूरी आझादी महेता कर्मचंदको वग्स दिये, और अकवरी मुहरी फरमान दिया गया था। उसी महेताने पूजारीयोंके खरचको छोड दिया इस हैसीयतसे कि-उन पर वन्दगाने हजरत इवादतने महरवानी कीथी (देवरोंका खरच अकबरसे दिलवाया)। लेकिन सतरंजाके तमाम देहरोंपर जो जैन पंथीयों के कब्जेम है, दखल देना जायज (योग्य) नहीं।
मुद्दत तेहत्तर सालका जमाना हुवा कि छोटे तपापंथीयों ने श्रीहीरविजय सूरिके वडे तपापंथीयोंको अपनेसे जायज (अलग) करदिया, चुनाचे अव भाण (निहाल) चंद सेवडा. चेला थीहीरविजयसूरिसे दरियाफ्त करना चाहिये कि-देहरे आदि नाथ और वह (उतरावनका) किला वगेरह तिहत्तर साल पहलेसे तुम्हारे कलम है ? या तिहत्तर सालके वादसे? । अगर भान (निहाल) चंद यह कहे कि-७३ साल पहले से देहरा व किल्ला हमारी मिलकियतमे है तो छोटे तपापंथीयोंकी तहरीर के तायफेमें हीरविजय
रिके पंधी उसले अलग होगये हैं। .. शढुंजय देहरा आदिनाथ और किल्ला उतरावनका तमाम जैन पायोको मिला हुआ है, अगर कोई दावा करे तो झूटा है। बार अगर भानचंद यह कहे कि-७३ साल के बादसे किल्ला और दहर। हमारे कब्जे में है, इस विपयमें तजवीज की जायगी कि सिला आर देहरा कव वनवाया गयाथा? और वह (भानचंद) ५९ मा बताये कि तुम्हारे चेलेका क्या नाम है? और इस .. पहले कोई इमारतधी या नहीं? ।