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परिशिष्ट (1)
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८ आठवीं मर्तबा १५९१ में मजाहिदखां गुजरातीने इस देहरे को तोड डाला, फिर इसी सम्मतमें कर्मा डोसीने चितोड ( जैपुर - जेसहोर ? ) से आकर देहरे और मूरत को दुरस्त कराइ ।
९ नवीं मर्तबा वादशाह हुमायु ( अकवर ) गुजरात में तशरीफ लाये, सं. १५२३ में वहादुर गुजराती को फिरंगीयोंने मार डाला, सुलतान महमूद बादशाह होगया, महमूदके जमाने में ११ साल तक मुल्क सोरठ में बेअमनी रही ( उन फिरंगीयोंने वडा खलल -मचाया ) ।
( सं . ) १५० ( ६ ) ४ में सतरंजा मजाहिदखांको जागीर में दिया गया, जसवंत गंधी ( खुशवू बेचनेवाला) जो कि अंचल गच्छका था, और मजाहिद खां के दरबार में बहुत दखल (असर) रखता था, उसने मजाहिदखांसे अर्ज करके उसी सं. ( १५० (६) ४ ) में फागुन सुदी ३ जुम्मे (शुक्रवार) की रात को किले में तामीर (बनाना) शुरु किया, एक बडा देहरा और ३५ छोटे देहरे बनाये । किरतरान् ( खरतर ) पंथी के चेलोंने उसी किलेसें ( दो मंजील इमारतें) २२ देहरे बनवाये । कडवामती के चेलोंने उसी किलेमें २ देहरे (दो मंजील इमारतें बनवाये । पास गच्छके चेलोंने ३ देहरे बनवाये । चौहत और वीरपाल बनीयेने जो कि अंचलिया गिरोहका मुरीदथा, ( उसने ) इमारतें बनाकर काम तीन सालतक जारी रखा, तीन बड़े देहरे और ९ छोटे देहरे बनवाये ।
अकबर बादशाह के ८ वें सन्से १३ तक पदमसी डोसी और हु [भी]मा महेता ओसवाल जो कि खरतर गिरोहका मुरीद थाउसने ५ साल तक तमाम तूटे हुए देहरों की मरम्मत कराई ।
रामजी तपाने एक देहरा उसी किलेमें बनाया ।
इलाहि १९ वें सनमें गुजरातके मुल्क में कहत ( अकाल ) पडा इसी वजह से सतरंजा ४ सालतक गैर आबाद ( विरान ) पडा रहा । ( २२ इला हिमें) फिर आवाद हुआ ।