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યુગપ્રધાન જિનચંદ્રસૂરિ
२८3 (ઉપરોક્ત શાહિ ફરમાન બીજાની બીજી નકલ આ પ્રમાણે મળે છે)
. महार
अल्लाहो अकवर बादशाह अकवर । याददास्त देहरे और किल्ले सतरंजा पहाड पर वाकै है, और तमाम जैन धर्मीयों (पंथों) के पूजनेकी जगह (तीर्थस्थान) है, उनकी हकीकत
इस जमाने में भाणचंद सेवडा ममानिअत (मना) करता है कि-इस किलेके अंदर देहरा मत वनाओ।
१ पहेली मतवा भरत चकरवरत वल्द आदिनाथने सतरंजा पहाड पर किला और देहरा वनवाया।
२ दूसरी मर्तवा एक मुद्दत (वहुत समय) के वाद सगर चकरवरत वल्द सुमेर (?) (जितशत्रु) ने पहाड पर देहरा दुरस्त करवाया। ___३ तीसरी मतवा राजा दुस्तर (जुधिस्टर) पांडवने पहाड पर देहरा वनवाया। .४ चौथी मतवा सम्मत् १०८ जो विक्रमी है, जावड वनियेने देहरा वनवाया। । ५ पांचवी मतवा सम्मत् १२१३ में महता माहर (वाहड) देव, जो कि राजा जयसिंह का मुलजिम (अधिकारी) था, देहरा बनवाया।
६ छठी मतने सुलतान अल्लावदीन के जमाने (सम्मत् १३०१ । १३७१]) में समरा वनियेने एक नइ मूरत वनवाकर पुराने मंदिरकी हिफाजत (जीणोद्धार कराके उसीमें स्थापित) की।।
७ सातवीं मर्तवा वहादुरशाह गुजरातीके जमानेमें १५ (८७) ७८ में करमा डोसी, जो कि जैन गिरोह (पूनमीये गच्छ) का चला (भक्त) था, ने इसी तरह पुराने देहरे की मरम्मत कराके एक पुरानी मूर्ति अमुक (ऐरक) समिताके द्वारा तयार कराके (ताड दी गई, मृत्ति की मरम्मत कराके) इसी देहरे में रखी।