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________________ अनेक उत्तरवर्ती ग्रन्थकार भगवान कुन्दकुन्दके साहित्यके ऋणी रहे हैं और टीका साहित्य के प्रणेताओंको उपयुक्त उद्धरण प्रदान करनेमें तो उनके अनेक ग्रन्थ साक्षात् कामधेनु सिद्ध हुए हैं। उनकी समग्र रचना मतवाद तथा सम्प्रदायवादसे अस्पृष्ट है । समयसारप्राभूतका तो दिगम्बर, श्वेताम्बर, स्थानकवासी आदि विभिन्न सम्प्रदायी जैनी जन ही नहीं वरन् अनेक अजैन भी भक्तिपूर्वक स्वाध्याय करते हैं । मात्र इस एक क्रूतेसे ही प्रत्यक्ष है कि योगीश्वर कुन्दकुन्द प्राचीन भारतके सर्व महान आध्यात्मिक सन्त थे । इन आचार्यप्रवरकी महानतासे प्रभावित होकर अनेक जैन साधुसंघाने सातवीं, आठवीं शताब्दीसे ही, जब वे गण-गच्छ अन्वयादि रूपसे भले प्रकार सुसंगठित होना प्रारंभ हुए, स्वयंको कुन्दकुन्दकी अम्नाय या अन्वयका घोषित करके गौरवान्वित अनुभव किया। अनेक शिलालेखों में अपनी परम्पराका उल्लेख करते हुए उक्त परम्पराके सर्वमहान् एवं प्राचीनतम गुरुओंने स्तुतिपूर्वक भगवान् कुन्दकुन्दका स्मरण किया। उन्हें तीर्थंकर महावीर प्रभुके मूल संघका अप्रणी, मुनिनायक या गणी, उनके धर्मशासनको वर्धमान करनेवाला, जिनवाणीकी सर्वापेक्षिक श्रेष्ठताको प्रमाणित करनेवाला, सम्पूर्ण भरतक्षेत्र में उसे प्रतिष्ठान्वित करने एवं लोकप्रिय बनानेवाला, अनेक चमत्कारी शक्तियोंसे युक्त, चारणऋद्धि प्राप्त साक्षात् केवलिभगवान के से धर्मश्रण करनेवाला महाभाग; इत्यादि बताया गया है । उपलब्ध शिलालेखों में आचार्य कुन्दकुन्दसम्बंधी प्रमुख उद्धरण इसप्रकार श्रीमतां वर्द्धमानस्य वर्द्धमानस्य शासने । श्री कोण्डकुन्दनामाभून्मूलघाणी गणी ॥ श्र. वे. गो. शिलालेख ५९-६९, ४८२ विभुर्भुवि fre कौण्डकुन्दः कुन्दप्रभा -प्रणयिकीर्ति-विभूषिताशः । यश्चारुचारण-कराम्बुजचञ्चरीकश्चक्रे श्रुतस्य भरते प्रयतः प्रतिष्ठाम् ॥ are शि. ले. ५४-६७ नस्य अन्वये भूविदिते बभूव यः पद्मनन्दिप्रथमाभिधानः । श्रीकण्डकुन्दादि मुनीश्वराख्यस्सत्संयमादुद्गत - चारणद्धिः ॥ श्रवणबेलगोल शि. ले ४०-६४ श्रीपद्मनन्दीत्यनवद्यनामा ह्याचाय्र्यशब्दोत्तर कोण्डकुन्दः । द्वितीयामासीदभिधानमुद्यच्चरित्रसज्जा तसुचारणर्द्धिः ॥ बद्दी. नं. ४२ ४३ ४७, ५०
SR No.011511
Book TitleKanjiswami Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri, Himmatlal Jethalal Shah, Khimchand Jethalal Shah, Harilal Jain
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year1964
Total Pages195
LanguageGujarati
ClassificationSmruti_Granth
File Size16 MB
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