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आचारांग-मूळ तथा थापान्तर - से तं संबुज्झमाणे आयाणीयं समुठ्ठाए सोच्चा भगवओ, अणगाराणं वा अंतिए; इह मेगेसिं णायं भवइ-एस खलु गंथे, एस खलु मोहे, एस खलु मारे, एस खलु णरए । इच्चत्थं गढिए लोए; जमिणं विरुवरूवेहिं तसकायसमारंभेण तसकायसत्थं समारंभमाणे अण्णे अणेगरूवे पाणे विहिंसति । (५१)
से बेमि-अप्पेगे अच्चाए हणंति, अप्पेगे अजिणाए वहति, अप्पेगे मंसाए वहति, अप्पेगे सोणिताए वहांत, अप्पेगे हिययाए वहंति, एवं पित्ताए, वसाए, पिच्छाए, पुच्छाए वालाए, सिंगाए, विसाणाए, दंताए, दाढाए, नहाए, हारुणाए, अडीए, अट्टिमिंजाए, अट्टाए, अणटाए, अप्पेगे हिंसिसु नेत्ति वा वहंति, अप्पेगे हिंसंति मेत्ति वा वहति, अप्पेगे
१ अर्चार्थ [शरीरार्थ
एक जागाने भगवान अथवा तेमना मुनिओ पासेथी तत्व सांभळीने आदरणीय वस्तुने ग्रहण करनारा पुरुषो एवं जाणता रहे छे के ए त्रसकायनी हिंसा खरेखर कर्म बंधनी हेतु छे, मोहनी हेतु छे, मरणनी हेतु छ, तथा नरकनी हेतु छे, तेम छतां लाको विषयगृद्ध वनेला छे, जेथी तओ विचित्र आरंभाथी त्रस जीवो तया तेना संबंधे रहेल स्थावर जीवोनी हिंसा करता रहे छे. (५१)
(त्रस जीवोनी हिंसाना हेतुओ.) केटलाएक लोको जानवरोना शरीरनो भोग आपवा माटे तेने मारे छे. केटलपरक तेना चामडा माटे मारे छे. केटलाएक तैना मांस मटे मारे छे. एम केटलाएक लोहीना याटे, केटलाएक हृदयना माटे, केटलाएक पित्त माटे, वसाओ। पाटे, पीछ माटे, पूंछडी माटे, वाळ माटे, शीगडा माटे, दाढाओ माटे, नख माटे, नाडीओ माटे, हाडला माटे, चरवी माटे, एम अनेक स्वार्थो माटे तेने मोर छे. केटलारक नियोजन मात्र गन्नत खातर जीव हिंसा करे छे. केटलाएक "आपणने एणे माई हतु" एy विचारीने तेने मारे छे. केटलाएक "आपणने ए मारे छे" शरिना अंदरनी रगो जे रू पीजबाना मजबूत तांतणा तरीके वपराय छे लेमना
माटे.