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आचारांग-मूळ तथा भाषान्तर णो सेवती य परवत्थं, परपाए२ वि से ण भुजित्था; परियज्जियाण ओमाणं, गच्छति संखडिंअसरणाए ।१९। (४७९) मायन्ने असणपाणस्स, णाणुगिद्धे रसेसु अपडिन्ने; अच्छिपि णो पमजिय, णोविय कंडूयये मुणी गायं ।२०। (४८०) अप्पं तिरियं पेहाए, अप्पं पिट्टओ व पेहाए; अप्पं वुइए पडिभाणी, पंथपेही चरे जयमाणे ।२१।(४८१) सिसिरांस अद्धपडिवन्ने, तं वोस्सज्ज वत्थ-मणगारे; पसारित्तु बाहू परकमे, णो अवलंबिया ण कंधंसि.२२॥
(९८२)
१ प्रधान परकीयं वा यस्त्रं २ परपात्रेपि ३ भुंक्ते ४ अपमानं ५ पाकस्थामं ६ अल्पशब्दोत्राभाववाची.
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वळी परायुं वस्त्र अंगे नहि धरता; पराया पात्रमा पण ते नहि जमता; अने अपपानने नहि गणतां अहीन भावे रसोइखानाओमा आहार याचवा जता हता. [४७९]
वळी तेो नियमित अशनपान वापरता; रसमां आसक्त न थता; तथा रस माटे प्रतिज्ञा पण नदि बांधता; किंबहुना खरज मटाडवा माटे खरडता पण न हता. ४८०]
भगवान विहार करता आडं के पूंठे अल्प जोता अर्थात् जोता नहि रस्तामां अल्प वोलता अर्थात वोलता नहि. किंतु मार्ग जोता थका यत्नवंत थइनल्या जाता हता. [४८१]
___ भगवान वीजे वर्षे ज्यारे अर्धी शिशिररुतु वेठी त्यारे ते [इंद्रदत्त] वखने छांटी दइने छूट बहुथी विहार कर्या जता. [अर्थात्] ताहना माटे वाहुने संकोचतां [नहि.] तथा स्कंध उपर पण वाहु धरता नहि. [४८२]