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आचारांग-मूळ तथा भाषान्तर. एताइं सो उरालाई, गच्छति णायपुत्ते असरणाए ।१०। अवि साहिए दुवासे सीतोदं अभोच्चा णिक्खंते; एगत्तगए पिहियच्चे, से अहिनायदंसणे संते ।११। (४७२) पुढविं च आउक्कायं, तेउलायं च वाउकायं च. पणगाय बीयहरियाई, तसकायं च सव्वसो णच्चा ।१२। " एयाइं संति” पडिलेह, चित्तमंताई से अभिन्नाय; परिवज्जियाण विहरित्था, इति संखाए से महावीरे ।१३। (४७३) अदु थावरा तसत्ताए, तसजीवा य थावरत्ताए; अदुवा सव्वजोणीया सत्ता कम्मुणा काप्पिया पुढो बाला ॥१४॥ (४७४)
भगवं च एव–मन्नेसी, सोवहिए हु लुप्पती बाले; हता. [४७१]
भगवाने दीक्षा लीधा अगाउ लगभग वे वर्षथी थंडं पाणी पी छाडंयु हतुं. ए रीते तेओ वे वर्ष लगी अचित्त जळ पीता थका एकत्वभावना भावता कपायरुप अग्नि उपशमावीने शांत वन्या थका तथा सम्यकत्वभावथी भावित रहेता थका दक्षित थया. [४७०]
भगवान, पृथ्वी, जळ, अग्नि, वायु, सेवाळ-वीज-लीलोतरीरुप, वनस्पति, तथा त्रसकाय ए ववाने " छता " अने “ समवि छ " एम गणीने तेना आरंभनो परीहार करी विचरता. [४७३]
वळी स्थावर जीवो कर्मानुसारे भवांतरे त्रसरुपे पण ऊपजी शके छे अने बस जीवो स्थावररुपे पण ऊपजे छे. अथवा रागद्वेप सहित सर्व जीवो कर्मानुसारे सई योनिओमां ऊपजता रहे छे. [ एम संसारनी विचित्रता रहेली छे एवं भगवान् विचारता] [४७४]
अने एम भगवान महावीरदेवे विचारीने जाण्यु के उपधिसहित । अज्ञानी १ उपवि-उपाधि-ते वे प्रकारनी छे द्रव्योपधि तथा भावोपधि.