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अध्ययन नवमुं.
___ [१३७ सागारियं ण सेवइ, इति से सयं पवेसिया' झाति ।। (४६७) जे केइ इमे अगारत्था, मीसीभावं पहाय से झाति; पुट्ठोवि णाभिभासिंसु, गच्छति णाइवत्तती अंजू ।७। (४६८) णो सुगर-मेत-मेगेसिं, णा भिभासे अभिवायमाणे; हयपुचो तत्थ दंडेहिं, लूसियपुच्चो अपुन्नेहिं ।। (४६९) फरुसाइं दुत्तितिक्खाइं, अतिअच्च मुणी परक्कममाणे;
आघयणगीताई, दंडजुझाइं मुट्टिजुज्झाइं ।९। (४७०) गढिए मिहोकहासु, समयंमि णायपुत्ते विसोगे अदक्खू; १ आत्मानं वैराग्यमार्गेप्रविश्य. २ हिसितपूर्वः ३ अतिगत्य
पाते पोताना आत्माने वैराग्यमार्गमा लावीने धर्मध्यान ध्याता हता. [४६७]
भगवान, गृहस्थो साथे हळवू मळवू टोडीने ध्याननिमग्न रहेता. गृहस्थो कई पूछता तो तेमना साथे ए वखते भगवान बोलता नहि पण पोतानुं हित संपादन करवा चाल्या जता हता. सरल स्वभावी भगवान ए रीते मोक्ष मार्गने अनुदचता हता. [४६८]
भगवानने कोइ वखाणता तो तेना साथे पण कशुं बोलता नहि, तेमज जे पुण्यहीन अनार्यो तेमने दंडादिकथी मारता के वाळ खेचीने दुःख देता तेमना तरफ कोप करता नहि. [एवं प्रवर्तन खरे एवा महापुरुषो ज करी शके छे. प्राकृत जनोथी एम वर्तवु मुश्केल छे. ] [४६९]
बळी भगवान, नहि खमी शकाय एवा कठोर परीपहोनी कशी दरकार नहि करता अने लोकोथी थवा नृत्य के गीतमां राग नहि धरता; तथा दंडयुद्ध के मुष्टियुद्धनी वातो सांभली उत्सुक नहि बनता. [४७०]
कोइ वखते ज्ञातनंदन भगवान, स्त्रीओने परस्परनी कामकथामां तल्लीन थए-' . ली जोता तो त्यां रागद्वेषरहित मध्यस्थपणे रहेता. ए रीते एवा जवरजस्त संकटो पर कशुं पण लक्ष नहि आपतां ज्ञातपुत्र भगवान् संयममां प्रवा जता