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________________ भगवई ૪૨૪ o ५६ तएण तस्स सिवस्स रण्णो ग्रण्णया कयाड पुव्वरत्ताव रत्तकालसमयसि रज्जधुर चिंतेमाणस्स अयमेयारूवे अज्झत्थिए' चितिए पत्थिए मणोगए सकप्पे समुप्पज्जित्था - प्रत्थिता मे पुरा पोराणाण सुचिण्णाण सुपरक्कताण सुभाणं कल्लाणाण कडाण कम्माण कल्लाणफल वित्तिविसेसे, जेणाह हिरण्णेण वड्ढामि सुवणेण वड्ढामि, धणेण वड्ढामि, धण्णेण वड्ढामि पुत्तेहि वड्ढामि, पसूहि वड्ढामि, रज्जेण वड्ढामि, एव रट्टेण वलेण वाहणेण कोसेण कोट्ठागारेण पुरेणं अतेउरेण वड्ढामि, विपुलधण - कणग-रयण'- मणि-मोत्तिय सखसिलप्पवाल-रत्तरयण ॰-सतसारसावएज्जेण प्रतीव ग्रतीव ग्रभिवड्ढामि, तकिण ग्रह पुरा पोराणाण" "सुचिण्णाण सुपरक्कताण सुभाण कल्लाणाण कडा कम्माण॰ ‘एगतसो खय" उवेहमाणे विहरामि ? त जावताव ग्रह हिरणेण वड्ढामि जाव' ग्रतीव-प्रतीव अभिवड्ढामि जाव मे सामतरायाणो वि वसे वति तावता मे सेय कल्ल पाउप्पभायाए रयणीए जाव' उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते सुबहु लोही - लोहकडाह - कडच्छुय" तविय तावसभडग घडावेत्ता सिवभद्द कुमार रज्जे ठावेत्ता त सुवहु लोही - लोहकडाह- कडच्छुय तविय तावसभडग गहाय जे इमे गगाकुले वाणपत्था तावसा भवति, [त जहा - होत्तिया पोत्तिया " कोत्तिया जहा प्रववाइए जाव" प्रायावणाहिं पचग्गि १. स० पा० - अज्झग्थिए जाव समुप्पज्जित्था २. स० पा०—जहा तामलिस्स जाव पुत्ते हि । ३ स० पा०—रयरण जाव सत० । ४ • सावदेज्जेरण (क, व, म, स) । ५ स० पा– पोरारणारण जाव एगतसोक्खय । ६ एगतसोक्खय (x) 1 ७ उन्ह० ( स ) | ८ तचैव जाव ( अ, क, व, म. स ) । ६ भ० २।६६| १० कडेच्छुय (क, ता, व, म) । ११ सोत्तिया (क, व, वृपा) । १२ केषुचिदादर्शेषु विस्तृत पाठोस्ति । तदनन्तर 'जहा ओववाइए' इति सक्षिप्तपाठस्य सूचनमप्यस्ति । एतद् द्वयोर्वाचनयो सम्मिश्रणेन जातम् | केवल 'व' सकेतितादर्शे एकैव विस्तृत वाचना लभ्यते । सा च इत्य ० 1 मस्ति - होत्तिया पोत्तिया कोत्तिया जण्णई सड्ढई थालई हुबउट्ठा [हुचउट्ठा (अ) हुपतुट्ठा (क, व), उट्टिया (ता ) ] - दतुक्खलिया उम्मज्जगा सम्मज्जगा निमज्जगा सफ्क्वाला 'उद्धकडुयगा अहोकडुयगा' ['X' (क, व, म)] दाहिण कूलगा उत्तरकूलगा सखघमगा कूलघमगा मियलुद्धगा हत्थि - तावसा जलाभिसेयकढिगगत्ता अवुवासिणो वाउवासिणो सेवालवासिणो [वेलनासिरगो (स) ] अभक्ख वाउभक्खिणो सेवालभक्खिणो मूलाहारा कदाहारा पत्ताहारा तयाहारा पुप्फाहारा फलाहारा वीयाहारा परिसडिय - पडु-पत्तपुप्फफलाहारा उद्दडा रुक्खमूलिया मडलिया विलवासिणो [ वलिवासिगो ( क ), 'पलवासिणो (व), वणवासिणो दिसापोक्खिया, आतावणेहि पचग्गितावेहि (म)]
SR No.010873
Book TitleJainagmo Me Parmatmavad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashanalay
Publication Year
Total Pages1157
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size50 MB
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