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________________ वीसत (पढमो उद्देसो) ६५ एव खलु ग्रह इमेण एयारूवेण ओोरालेण' विउलेण पयत्तेण पग्गहिएण कल्लाणेण सिवेण धन्नेण मगल्लेण सस्सिरीएण उदग्गेण उदत्तेण उत्तमेण उदारेण महाणुभागेण तवोकम्मेण सुक्के लुक्खे निम्मसे अट्ठि चम्मावणद्धे किडि - किडियाभूए किसे धमणिसतए ' जाए । जीवजीवेण गच्छामि, जीवजीवेण चिट्ठामि', भास भासित्ता वि गिलामि, भास भासमाणे गिलामि, भास भासि - सामीति गिलामि । ० से जहानामए कट्ठसगडिया इ वा, पत्तसगडिया इवा, पत्त - तिल-भडगसगडिया इवा, एरडकट्ठसगडिया इ वा, इगालसगडिया इ वा — उन्हे दिण्णा सुक्का समाणी ससद्द गच्छइ, ससद्द चिट्ठइ, एवामेव ग्रह पि ससद्द गच्छामि, सद्द चिट्ठामि । त प्रत्थिता मे उट्ठाणे कम्मे बले वीरिए पुरिसक्कार - परक्कमे त जावता मे प्रत्थि उट्ठाणे कम्मे बले वीरिए पुरिसक्कार - परक्कमे जाव य मे धम्मायरिए धम्मोवदेसए समणे भगव महावीरे जिणे सुहत्थी विहरइ, तावता मे सेय कल्ल पाउप्पभायाए रयणीए, फुल्लुप्पल कमलकोमलुम्मिलियम्मि हपडुरे' पभाए, रत्तासोयप्पकासे', किसुय - सुयमुह - गुजद्धरागसरिसे, कमलागरसङबोहए, उट्टियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते समण भगव महावीर वदित्ता नम सित्ता' •णच्चासन्ने णातिदूरे सुस्सूसमाणे अभिमुहे विणएण पजलियडे • पज्जुवासित्ता समणेण भगवया महावीरेण अब्भणुण्णाए समाणे सयमेव पच महव्वयाणि आरोवेत्ता, समणा य समणी यखामेत्ता तहारूवेहि थेरेहि कडाईहि सद्धिवि पुल पव्वय 'सणिय-सणिय " दुरुहित्ता' मेहघणसनिगास" देवसन्निवात पुढवीसिलापट्ट पडिलेहित्ता, दब्भसथारग सथरित्ता दव्भसथारोवगयस्स सलेहणाभूसणाभूसियस्स भत्तपाणपडियाइक्खियस्स पानोवगयस्स काल प्रणवकखमाणस्स विहरित त्ति कट्टु एव सपेहेइ, सपेहेत्ता कल्ल पाउप्पभायाए रयणीए जाव उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते जेणेव समणे भगव महावीरे" तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समण भगव महावीर तिक्खुत्तो प्रायाहिण -पयाहिण करेइ, करेत्ता वदइ नमसइ, वदित्ता नमसित्ता णच्चासन्ने णातिदूरे सुस्सूसमाणे णमसमाणे अभिमुहे विणण पजलियडे ० पज्जुवासइ ॥ १ उरालेरण (क, ता, म, स), स० पा०ओरालेरण जाव किसे । २ धवरिण ० ( क, ता, ब, म ) । ३ स० पा० - चिट्ठामि जाव गिलामि जाव एवमेव । ४. रतणीए (ता) । ५. अहुपड़रे ( अ, ता, व); अहापडुरे ( स ) । ६ • प्पगासे (क), ° सकासे (ता) | ७ स० पा० – नमसित्ता जाव पज्जुवासित्ता । ८ 8 सरिणत सरिणत ( क ) । दुहित्ता ( कम ), दू हित्ता (ता), रुहित्ता (a ), दुरूहित्ता ( स ) | १०. मेघ० ( अ ) | ११, स० पा० - महावीरे जाव पज्जुवास |
SR No.010873
Book TitleJainagmo Me Parmatmavad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashanalay
Publication Year
Total Pages1157
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size50 MB
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