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भगवई
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६७ खदयाइ ! समणे भगव महावीरे खंदयं अणगार एव वयासी से नूणं तव खदया ! पुव्वरत्तावरत्त कालसमयसि धम्मजागरिय° जागरमाणस्स इमेयारूवे अज्झत्थिए' चितिए पत्थिए मणोगए सकप्पे समुप्पज्जित्था - एव खलु ग्रह इमेण एयारूवेण तवेण श्रोशलेण विउलेणं त चेव जाव' कालं ग्रणवकखमाणस्स विहरित्तए त्ति कट्टु एव सपेहेसि, सपेहेत्ता कल्ल पाउप्पभायाए रयणीए जाव उट्टियम्म सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते जेणेव मम प्रतिए तेव हव्वमागए । से नूण खदया ! अट्ठे समट्ठे ? हता ग्रत्थि ।
हासु देवाणुप्पिया । मा पडिबध ॥
६८ तए ण से खदए अणगारे समणेण भगवया महावीरेण प्रब्भणुण्णाए समाणे हट्ठतुट्ठ" "चित्तमाणदिए नदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाण ° हियए उट्ठाए उट्ठेइ, उट्ठेत्ता समण भगव महावीर तिक्खुत्तो याहिण-पयाहिण करेइ', 'करेत्ता वदइ नमसइ, वदित्ता नमसित्ता सयमेव पच महाव्वयाइ आरुहेइ', ग्रारुहेत्ता समणा य समणीग्रो य खामेइ, खामेत्ता तहारूवेहि थेरेहिं कडाईहिं सद्धि विपुल पव्वय सणिय-सणिय द्रुहइ, द्रुहित्ता मेहघणसन्निगास देवसन्निवात पुढविसिलापट्टय' पडिलेइ, पडिलेहेत्ता उच्चारपासवणभूमि पडिलेहेइ, पडिले हेत्ता दव्भसथारग संथरइ, सथरित्ता पुरत्याभिमुहे सपलियकनिसणे करयलपरिग्गहियं दसनह सिरसावत्त मत्थए अर्जील कट्टु एव वयासीनमोत्थु ण रहताण भगवंताण जाव" सिद्धिगतिनामधेय ठाण सपत्ताणं । नमोत्थु ण समणस्स भगवन महावीरस्स जाव" सिद्धिगतिनामधेय ठाणं सपाविउकामस्स |
वदामि ण भगवत तत्थगय इहगए, पासउ मे" भगव तत्थगए इहगय ति कट्टु वदइ नमसइ, वदित्ता नमसित्ता एव वयासी - पुव्विपि मए समणस्स भगवो महावीरस्स अतिए सव्वे पाणाइवाए पच्चक्खाए जावज्जीवाए जाव" मिच्छादसणसल्ले पच्चक्खाए जावज्जीवाए । इयाणि पि य ण समणस्स भगवत्रो महावीरस्स प्रतिए
१ पुव्वरत्तावररत्त० ( क ); स० पा० – पुव्वरत्तावरत जाव जागरमाणस्स ।
२. स० पा० - अज्झत्थिए जाव समुप्पजित्या ।
३. भ०२/६६ |
४ भ० २।६६ ।
५. स० पा०- -टुतुटु जाव हियए ।
६. सं० पा०—करेइ जाव नमसित्ता ।
७ आरुभेइ ( कम ) 1
ε
कडादीहि ( अ, व, स ), कडायीहि (ता, म) 1 ( अ, क, म,स) ।
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१०
ओ० सू० २१ । ११. ओ० सू० २१
१२. मे से (क, व, म, स ) ।
१३. भ० १।३८४ |