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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् . अर्थ-फिर यह श्रुतज्ञान समस्त नय निक्षेपोंसे वस्तुके खरूपकी परीक्षा करनेके लिये कसोटीकी समान है. तथा स्याद्वाद कहिये कथंचित् वचनरूपी वज्रके निर्घातसे भग्नकिये हैं अन्यमतरूपी पर्वत जिसने ऐसा है ॥ १७ ॥
इत्यादिगुणसंदर्भनिर्भर भव्यशुद्धितम् ।
ध्यायन्तु धीमतां श्रेष्ठाः श्रुतज्ञानमहार्णवम् ॥ १८ ॥ अर्थ-इत्यादि पूर्वोक्त गुणोंकी रचनासे भरा हुआ; भव्य जीवोंको शुद्धिका देनेवाला श्रुतज्ञानरूप महासमुद्र है. सो इसको बुद्धिमानोंमें जो श्रेष्ठ हैं वे ध्यावो (चितवन करो). यह प्रेरणारूप उपदेश है ॥ १८ ॥ अब ऐसे श्रुतज्ञानकी महिमा कहते हैं,
भार्दूलविक्रीडितम् । यजन्मज्वरघातकं त्रिभुवनाधीशैर्यदभ्यर्चितम्
यत्स्याबामहाध्वजं नयशताकीर्णं च यत्पथ्यते । उत्पादस्थितिभङ्गलान्छनयुता यस्मिन्पदार्थाः स्थित्ता
स्तच्छ्रीवीरमुखारविन्दगदितं याच्छुतं वः शिवम् ॥ १९ ॥ अर्थ-जो श्रुतज्ञान संसाररूपी ज्वरका तो घातक है और तीन भुवनके ईश इन्द्रोंसे पूजित है तथा जो स्याद्वादरूपी वड़ी ध्वजावाला है और सैकड़ो नयोंसे पूर्ण है, ऐसा कहा जाता है तथा जिसमें उत्पाद, व्यय, ध्रौव्य लांछन युक्त पदार्थ रहते हैं ऐसे श्रीवर्द्धमान खामीके मुखकमलसे कहा हुआ श्रुतज्ञान तुम श्रोता जनोंको कल्याणरूप हो. ऐसा आशीर्वचन है ॥ १९॥
वाग्देव्याः कुलमन्दिरं वुधजनानन्दैकचन्द्रोदयं
मुक्तेमङ्गलमग्रिमं शिवपथप्रस्थानदिव्यानकम् । तत्त्वाभासकुरङ्गपञ्चवदनं भव्यान्विनेतुं क्षम __ तच्छ्रोनाञ्जलिभिः पिबन्तु गुणिनः सिद्धान्तवाईः पयः ॥ २०॥ अर्थ-नो वाग्देवी (सरखती )के रहनेको कुलगृह हैं तथा विद्वानोंके आनन्द उपजानेके लिये अद्वितीय चन्द्रमाका उदय है, 'मुक्तिका मुख्य मंगल व मोक्षमार्गमें गमन करनेके लिये दिव्य आनक कहिये पटह नामका वाजा है और तत्त्वाभास (मिथ्यात्व) रूपी हिरणके नाश करनेको सिंहके समान है तथा भव्य जीवोंको मोक्षमार्गमें चलानेके लिये समर्थ है ऐसे इस सिद्धान्तरूपी समुद्रके जलको हे गुणी जनो! कर्णरूपी अञ्जलियोंसे पान करो ॥२०॥