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________________ ज्ञानार्णवः । भृङ्गा गन्धोद्धताशाःप्रलयमुपगता गीतलोलाः कुरङ्गाः कालव्यालेन दृष्टास्तदपि तनुभृतामिन्द्रियार्थेषु रागः ॥ ३५ ॥ अर्थ - अरे देखो ! रसना इन्द्रियके वश तो मत्स्य (मच्छियें हैं वे अपने गलेको छिदाकर मृत्युको प्राप्त हुए) और हस्ती स्पर्श इन्द्रियके वशीभूत हो गढ़ेमें बांधे गये तथा नेत्र इन्द्रियके विषयदोषसे पतंग ( छोटे २ जीव) दीपकादिक ज्वालामें जलकर मरणको प्राप्त हुए हैं । और भ्रमर नासिका इन्द्रियके वशीभूत होकर सुगन्धसे मुग्ध हो नाशको प्राप्त हुए । इसी प्रकार हरिण भी गीतके (रागके) लोलुप हो कर्ण इन्द्रिऐसे एक एक इन्द्रियके विषयसे उक्त जीव नष्ट इन्द्रियविषयोंमें प्रीति (अनुराग) होती है सो यह यके विषयसे कालरूप सर्पसे मारे गये. होते देखते हैं तौ भी संसारी जीवोंके बड़ा खेद अथवा आश्चर्य है ॥ ३५ ॥ २१९ आर्या । एकैककरणपरवशमपि मृत्युं याति जन्तुजातमिदम् । सकलाक्षविषयलोलः कथमिह कुशली जनोऽन्यः स्यात् ॥ ३६ ॥ अर्थ- जो यह पूर्वोक्त एक एक इन्द्रियके वश हुआ जीवोंका समूह मरणको प्राप्त हुआ तो जो अन्य प्राणी समस्त इन्द्रियोंके विषयोंमें आसक्त है उसका भला किसप्रकार हो सकता है. अर्थात् वह किसप्रकार सुखी हो सकता है ? ॥ ३६ ॥ संवृणोत्यक्ष सैन्यं यः कूर्मोऽङ्गानीव संयमी । स लोके दोषपङ्काये चरन्नपि न लिप्यते ॥ ३७ ॥ अर्थ - जिसप्रकार कछुआ अपने अंगोंको संकोचता है उसप्रकार जो संयमी मुनि अर्थात् संकोचता वा वशीभूत करता है विचरता हुआ भी दोषोंसे लिप्त नहीं इन्द्रियोंके सेनासमूहको संवररूप करता है वही मुनि दोषरूपी कर्दम से भरे इस लोक में होता । भावार्थ- जलमें कमलकी समान अलिप्त रहता है ॥ ३७ ॥ 'अयनेनापि जायन्ते तस्यैता दिव्यसिद्धयः । विषयैर्न मनो यस्य मनागपि कलङ्कितम् ॥ ३८ ॥ अर्थ -- जिस मुनिका मन इन्द्रियोंके विषयोंसे किंचिन्मात्र भी कलंकित नहीं होता उस मुनिके आगे जो दिव्य सिद्धियें कही जायँगी वे विना यत्नके ही उत्पन्न होती हैं ॥ ३८ ॥ इस प्रकार ध्यानके घातक कषाय और विषयोंका वर्णन किया, इससे निर्णीत हुआ कि कषायी तथा विषयी पुरुषके प्रशस्त ध्यानकी सिद्धि कदापि नहीं होती | घनाक्षरी कवित्त | hta क्षमतें विडारि मान मृदुता मारि, माया ऋजुता लोभ तोप मिटावना । •
SR No.010853
Book TitleGyanarnava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Baklival
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1913
Total Pages471
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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