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________________ २१८ रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् . अर्थ-हे आत्मन्! इस जगतमें विषयजनित जो सुख है सो वास्तवमें दुःख ही है, क्योंकि-यह कष्ट अर्थात् आपदारूपी वृक्षोंका तो वीज है और तीव्र संतापोंसे विधा हुआ है तथा जिसका परिपाक( फल )अतिशय कटु है और ज्ञानसे वृद्ध विद्वानोंके. द्वारा निंदनीय है, इसकारण हे भाई! इसको छोड़ धूलॊके प्रपंचवाक्योंके माननेसे क्या लाभ ?॥३२॥ शार्दूलविक्रीडितम् । तत्तत्कारकपारतन्यमचिरान्नाशः सतृष्णान्वयै- . स्तरेभिर्निरुपाधिसंयमभृतो बाधानिदानः परैः। . शर्मभ्यः स्पृहयन्ति हन्त विषयानाश्रित्य यद्देहिन- स्तत्क्रुध्यत्फणिनायकाग्रदशनैः कण्डू विनोदः स्फुटम् ॥ ३३ ॥ अर्थ-यद्यपि विषयजनित पूर्वोक्त सुखकों दुःखही कहा है सो ठीक भी हैं, क्योंकि उस सुखको कारकोंकी पराधीनता है अर्थात् वह सुख अन्यके द्वारा होता है और तत्काल नाशवान् भी है तथापि ये संसारी जीव उपाधिरहित संयमके धारक होनेपर भी तृष्णाके साथ सम्बन्ध करते हुए बाधाके कारण ऐसे, अन्य धनादिकोंके द्वारा सुखके लिये विपयोंकी इच्छा करते हैं सो क्या करते हैं कि मानो क्रोधायमान नागेन्द्रके अगले दाँतोंसे (विपके दाँतोंसे) खुजलानेका साक्षात् विनोद ही करते हैं। भावार्थ-सांपके जहरीले दांतोंसे खुजलाना मृत्युका वा दुःखका ही कारण है ॥ ३३ ॥ पुनः । निःशेषाभिमतेन्द्रियार्थरचनासौन्दर्यसंदानितः प्रीतिप्रस्तुतलोभलचितमना को नाम निर्वेद्यताम् । . अस्माकं तु नितान्तघोरनरकज्वालाकलापः पुरः सोढव्यः कथमित्यसौ तु महती चिन्ता मनः कृन्तति ॥ ३४ ॥ अर्थ-अहो! खेद है कि-समस्त मनोवांछित इन्द्रियोंके विषयोंकी रचनाके सौंदर्यसे जिसका मन बँधा हुआ है तथा प्रीतिके प्रस्तावमें (चक्रमें) आनेसे लोभसे खंडित हो गया है मन जिसका ऐसे जीवोंमेंसे कौन ऐसा है जो विषयोंसे उदासीन होनेके लिये तत्पर हो । यहां आचार्य महाराज कहते हैं कि ये संसारी जीव विषयोंसे विरक्त तो नहीं होते परन्तु इन विषयोंसे उत्पन्न हुए अतिशय रूप तीव्र नरकाग्निकी ज्वालाके समूहको भविष्यतमें कैसे सहेंगे ? यही महाचिंता हमारे मनको दुःखित कर रही है ॥ ३४ ॥ __स्रग्धरा । मीना मृत्यु प्रयाता रसनवशमिता दन्तिनः स्पर्शरुद्धा बद्धास्ते वारिबंधे ज्वलनमुपगताः पत्रिणश्वाक्षिदोषात् ।
SR No.010853
Book TitleGyanarnava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Baklival
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1913
Total Pages471
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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