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________________ ૭૮ रायचन्द्र जैनशास्त्रमालायाम् जो ऐसी बांछा रखते हैं, उन्होंने अपने ज्ञानरूपी नेत्रको नष्ट किया है. ऐसे मुनियोंके ध्यानकी योग्यता नहीं हो सकती है ॥ ३५ ॥ अन्तःकरण शुद्ध्यर्थं मिथ्यात्वविषमुद्धतम् । निष्ठतं यैर्न निःशेषं न तैस्तत्त्वं प्रमीयते ॥ ३६ ॥ अर्थ-जिन मुनियोंने अपने अन्तःकरणकी शुद्धताके लिये उत्कट मिथ्यात्वरूपी समस्त विष नहीं वमन किया ( नहीं उगला ) वे तत्त्वोंको प्रमाणरूप नहीं जान सकते हैं। क्योंकि मिथ्यात्वरूपी विष ऐसा प्रबल है कि, इसका लेशमात्र भी हृदयमें रहे, तो तत्त्वार्थका ज्ञान श्रद्धान प्रमाणरूप नहीं होता तब ऐसी अवस्थामें ध्यानकी योग्यता कहां ? ॥ ३६ ॥ ३७ ॥ दुःषमत्वादयं कालः कार्यसिद्धेर्न साधकम् । इत्युक्त्वा स्वस्य चान्येषां कैश्विद्ध्यानं निषिध्यते ॥ अर्थ – कोई २ साधु ऐसा कहकर अपने तथा परके ध्यानका निषेध करते हैं कि, "यह काल दुःषमा (पंचम) है । इस कालमें ध्यानकी योग्यता किसीकेभी नहीं है" इस प्रकार कहनेवालोंके ध्यान कैसे हो ! ॥ ३७ ॥ संदिह्यते मतिस्तत्त्वे यस्य कामार्थलालसा । विप्रलब्धाऽन्यसिद्धान्तैः स कथं ध्यातुमर्हति ॥ ३८ ॥ पात्र अर्थ - जिसकी बुद्धि अन्यमतके शास्त्रोंसे ठगी गई है तथा जो काम और अर्थमें लुब्ध होकर वस्तुके यथार्थ खरूपमें संदिग्धरूप ( संदेहसहित ) है वह ध्यान करनेका कैसे हो ? क्योंकि जबतक तत्त्वों में ( वस्तुखरूप में ) संदेह होता है, तबतक मन निश्चल नहीं हो सकता और जब मनही निश्चल नहीं, तब ध्यान कैसे हो ? ॥ ३८ ॥ निसर्गचपलं चेतो नास्तिकैर्विप्रतारितम् । स्वाद्यस्य स कथं ध्यानपरीक्षायां क्षमो भवेत् ॥ ३९ ॥ अर्थ - एक तो मन खभावहीसे चंचल है, तिसपरभी जिसका मन नास्तिक वादियोंद्वारा वंचित किया गया हो वह मुनि ध्यानकी परीक्षामें कैसे समर्थ हो सकता है ? अर्थात् नहीं हो सकता, क्योंकि नास्तिकमती खोटी २ युक्तियोंसे आत्माका नाशही सिद्ध करते हैं । उसकी कुयुक्तियों में जिसका मन फँस जाता है, उसके ध्यानकी योग्यता कहांसे हो सकती है ? ॥ ३९ ॥ कान्दपप्रमुखाः पञ्च भावना रागरञ्जिताः । येषां हृदि पदं चक्रुः क तेषां वस्तुनिश्चयः ॥ ४० ॥ अर्थ — जिनके मनमें रागसे रंजित कांदर्पी आदि पांच भावनाओंने निवास किया है, उनके वस्तुनिश्चय ('तत्त्वार्थज्ञान ) कैसे हो ? ॥ ४० ॥
SR No.010853
Book TitleGyanarnava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Baklival
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1913
Total Pages471
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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