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________________ बुन्देली लोकगीत मुगला सोक जब भरे रे जब तनिक उघरि गई पीठ ! सोउत चन्द्रावल श्रोधकेरे तेरी व्याही मुगल ले जाय मुगला मारे गरद करे रे बिन ने लोयें लगा दई पार रक्तन की नदियाँ बहीं, रे बिन ने लोयें लगा दई पार ! ४- सुरहिन दिन की ऊँघन किरन की फूटन, सुरहिन बन को जाय हो माँ इक बन चाल सुरहिन दुज बन चालों, तिज बन पची जाय हो माँ कजली वन माँ चन्दन हरो विरछा, जाँ सुरहिन मो डारो हो मां मोघालो सुरहिन टुज मो घालो, तिज मो सिंघा गुंजार हो माँ अब की चूक वगस वारे सिंघा, घर बछरा नादान हो माँ को तोरो सुरहिन लाग-लरनियाँ, को तोरो होत जमान हो माँ चन्दा सुरज मोरे लाग लगनियाँ, वनसपति होत जमान हो मॉ चन्दा सुरज दोह ऊँ श्रयैवें, वनसपति भर जाय हो माँ धरती के वासक मोरे लाग लगनियाँ, धरती होत जमान हो माँ इक बन चालीं सुरहिन दुज बन चालों, तिज बन वगर रम्हानी हो माँ बन की हेरों सुरहिन टगरन श्राई, बछरे राम्ह सुनाई हो माँ प्रायो बरा पीलो मेरो दुघुप्रा, सिंघा बचन हार आई हो माँ हारे दुघुआ न पियों मोरी माता, चलो तुमारे सग हो मां गे गेवरा पीछे पीछें सुरहिन, दोऊ मिल वन को जांय हो माँ इक वन चालों सुरहिन दुज बन चालों, तिज वन पौंची जाय हो मां उठ उठ हेरे बन के सिंघा सुरहिन श्राज न आई हो माँ वोल की वांदी वचन की सांची, एक सें गईं दो से आई हो मां पैलो ममइयाँ हमई को भख लो, पीछे हमाई माय हो मां कोने भनेजा तो सिख-बुध दीनों, कोन लगो गुर कान हो माँ देवी जालपा सिख बुध दीनीं, वीर लगर लगे कान हो माँ जो कजली बन तेरो भनेजा, छुटक चरो सौ गऊ आगे सो गऊ पाँछे, होइयो बगर के साँढ़ हो माँ मैदान हो माँ ५ - सोहर जेठानी के भए नन्दलाल, कहो तो पिया देख श्राव महाराज सासू की हटको न मानी, सखिन सग लिंग चलीं महाराज पिया की हटकी न मानी, सखिन सग लिंग चलीं महाराज सासू ने डारी पिडियाँ, ननद श्रादर करें महाराज लं सुनी बिछिप्रन खनकार, जिजी ने लाला ढापलए महाराज देखत देनोरानी भग आई महाराज इतनी के सुनतन मनई मन कर सोच मनई मन रो रई, महाराज चलो लाला हाट बजार, ललन मोल ले दियो महाराज ६१६
SR No.010849
Book TitlePremi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremi Abhinandan Granth Samiti
PublisherPremi Abhinandan Granth Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size34 MB
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