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प्रेमी-अभिनदन-प्रय
कैसी भौजी मूरख अजान, ललन मोल न मिलें महाराज गऊसन के करो भौजी दान, कन्यमन के करो विग्राउ हो महाराज जमना के करो असनान चरइन चुन डारो महाराज लग गए पैले मास तो दूजे लागियो महाराज तीजे मास जब लागे तो चौथे लागियो महाराज चौथे मास जव लागे, जिमिरिअन मन चले महाराज पांचए मास जब लागे, नरगिभन भन चले महाराज लग गए छटएँ मास, बिहिन पै मन चले महाराज लग गए सातएँ मास तो निब्बू पै मन चले महाराज लग गए पाठएं मास तो सदाफल मन चले महाराज हो गए नौ दस मास. ललन न्हीने हो परे महाराज दिनोरनियां के भए न्हौने लाल कहोतो पिया देख आवै महाराज राजा को हटकी न मानी सखिन सग तिग चली महाराज सासू ने डारी पिडियां, ननद आदर फरे महाराज सुनि विछिपन ठनकार. विभोरानी ने लाल दे दये महाराज तुम ल्हौरी हम जेठी, उदिना को दुरा जन मानिनों महाराज
६-एक गडरियाई भाँवर आडर दीनी गाडर दीनी डला भर ऊन दीनी बम्मन मार पटा घर दीनी रूप की घरी सोने की माल रांहट चले पानी ढरे निम थे औलाद बढे कोपचो भावरें परीकै नई ?
७-दादरो अंगरेजी परी, गोरी, गम खानें ! काहाँ बनी चौकी काहाँ बने थाने काहाँ जो बन गए वे जेरखाने अंगरेजी परी, गोरी, गम खाने । अंगीत बनी चौकी, पछीत बने थाने बाकी देरी पै बनगए जेरखाने
अंगरेजी परी, गोरी, गम खाने ! वुन्देलखड अपने सम्बन्ध में अपनी भाषा में क्या कहता है ? किन-किन उत्सवो से उसे दिलचस्पी है ? उसके रीति-रिवाजो का वास्तविक महत्त्व क्या है ? समाज के विविध स्तरो के भीतर से आती हुई उसकी आवाज़ हमारे लिए क्या सन्देश रखती है ? इन प्रश्नो के उत्तर पाने के लिए बुन्देली लोकवार्ता का सचय तथा अध्ययन करना आव
ली लोकगीत का वास्तविक महत्त्व बुन्देली लोकवार्ता की पृष्ठभूमि मे ही समझा जा सकता है।