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प्रेमी-अभिनदन-ग्रंथ
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नसुक खनत निकसत पुज हीरन के,
जग-मग होति ज्योति जागत विभावरी। हिम है न आतप न पकिल प्रदेश जाहि,
विरचि विरचि कर सुरुचि घराघरी॥ नांधी कौन ऊघमन उल्का-पात
कप की भराभरी न बाढ़ की तराभरी। कीरति प्रखड धन्य धन्य श्री बुंदेलखण्ड,
, ऐसौ कौन देश करै रावरी बरावरी ॥
ध
बांकुरे बुदेलन के खगन के खेल देख,
ससक सकाय शत्रु होत रन बौना से। धन्य भूमि जहाँ वीर मानत न शक मन,
तत्र से, न मत्र से, न जादू से, न टोना से॥ छीने छत्र म्लेच्छन मलीने कर लीने यश,
कीने काम कठिन अनेक अनहोना से। जाके सुत होना सुठिलोना मृग-राजन कौं,
हँस-हँस बांध लेत मजु मृगछौना से ॥
सुख-भूमि यह, वह नित्य जहाँ,
नदियां नव नेह के नीरन की। उपमा नहिं आवत है लखि के,
सुखमा कल केन के तीरन की। हरसाव हियो हवारन को,
__सरसाव सुगघ समीरन की। वर वैभव का कह हीरन सौं
जहाँ छोहरी खेले अहीरन की।
मऊरानीपुर ]