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________________ वर वन्दनीय बुन्देलखण्ड स्व० घासीराम 'व्यास' जाके शीश जमुन डुलावै चौंर मोद मान, नर्मदा पखार पाद-पद्म पुण्य पेखी है। कटि फलकेन किंकिणी-सी कलधौत कांति, वेतवा विशाल मुक्त-माल सम लेखी है। 'न्यास' कह सोहं सीस-फूल सम पुष्पावति, __पायजेव पावन पयस्विनी परेखी है। ए होशशि! सांची कही, सांची कही, सांची कही, दिव्य भूमि ऐसी दुनी और कहुँ देखी है ॥ चित्रकूट, औरछौ, कलिंजर, उनाव तीर्य, - पन्ना, खजुराहो जहाँ कीति झुकि झूमी है। जमुन, पहूज, सिंधु, वेतवा, घसान, केन, मदाकिनि पयस्विनी प्रेम पाय घूमी है ॥ पचम वृसिंह, राव चपतरा, छत्रशाल, लाला हरदौल भाव चाव चित चूमी है। अमर अनन्दनीय असुर निकन्दनीय, वन्दनीय विश्व में बुंदेल-खड भूमी है ॥ लखन, विदेहजा समेत बनवासी राम, वास कियो हाई सोच शाति सरसाय लेहु । पाई सुख शरण अज्ञात-वास कीन्हो यहाँ, पाडवन प्रेमसौं प्रभाव उर छाय लेहु ॥ पाय ना पिराने होंहि भ्रम-भ्रम लोक-लोक, पलक विसार श्रम, चित विरमाय लेहु । ए हो शशि ! परम पुनीत पुण्य-भूमि यह, ननन निहार नैक हिय सियराफ लेहु । ७६
SR No.010849
Book TitlePremi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremi Abhinandan Granth Samiti
PublisherPremi Abhinandan Granth Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size34 MB
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