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वे मधुर क्षण ! प्रेमीजी ने अपनी दुकान की कितावें पढनेकी छूट मुझे दे रक्खी है । एक दिन 'शाहजहाँ' (डी० एल० राय कृत) नाटक लेकर जोर-जोर से पढने लगा। प्रराग था कि जिहनखां दारा का सिर काटने पाता है । दारा का बेटा सिपर पिता को नही छोडता और जल्लादो से कहता है कि तुम उन्हें नहीं मार सकते । दृश्य बडा ही करुण था। पढते-पढते मेरी आँखें गीली हो पाई । निगाह ऊपर उठी तो देखता हूँ कि प्रेमीजी के टप्टप् आँसू गिर रहे है । वास्तव मे प्रेमीजी बहुत ही नरम दिल के है। ऐमे प्रसगो पर उन्हें अपने हेम की याद भी हो पाती है।
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१. चि० विद्याधर (पस्सू) २. चि० यशोधर (जस्सू)
३ चपावाई (स्व० हेमचद्रके पुत्र और पत्नी।) प्रेमीजी में विनोदप्रियता भी खूब है । अपनी हंसी आप ही उडाना, यह उनके स्वभाव की विशेपता है । बुन्देलखण्ड का एक ग्राम-गीत-"डुकरा तोको मोत कतऊँ नइयाँ"-बडे लहजे के साथ गाया करते है। कभी-कभी पस्सू मचल जाता है। कहता है, "दादा, हम तो वही कहानी सुनेंगे।"
जानते हुए भी दादा पूछते है, "कौन-सी कहानी भैया ?"