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प्रेमी-अभिनदन-प्रथ ३ महर को शारदा देवी--पुरातन स्थान है । मैहर, मानिकपुर कटनी लाइन पर मैहर राज्य की राजधानी है। इस स्थान की वडी पूजा होती है।
४ पन्ना के प्राणनाथ-हिन्दुप्रो मे एक 'धार्मा मत है, जिसे प्राणनाथी भी कहते है। पन्ना इसका प्रधान केन्द्र है। गुजरात, पजाव, काठियावाड सभी जगह हजारो शिष्य है । मन्दिर के गुम्वज पर सोना लिपटा है। पुस्तक की पूजा होती है, जिसमे पुराण और कुरान का मिश्रण कहा जाता है। प्राणनाथ महाराज छत्रशाल के गुरु थे। कहते है, द्रव्य की कमी के कारण उन्होने वरदान दिया था कि जहां तक घोडे पर चढे जायोगे, हीरा की भूमि हो जायगी। अब भी उसी से लगो भूमि में विजावर व चरखारी राज्य मे हीरा निकलता है।
५ कुण्डेश्वर-टीकमगढ से ललितपुर की सड़क पर चार मील पर है। 'मधुकर'-कार्यालय यही है। जमडार नामक नदी में वर्तमान ओरछा नरेश के पितामह ने वांध लगवा कर एक मनोरम प्रपात का निर्माण कराया था, जो आज भी अपने अनुपम सौन्दर्य मे दर्शक को मुग्ध कर लेता है । प्रपात के निकट एक बडी कोठी तथा कुछ दूर पर दूसरो कोठी व उपवन है । प्रकृति का कमनीय स्थान है । शिवलिंग नूतन प्रणाली के मन्दिर में स्थापित है। मूर्ति प्राचीन है। यहां पर हर साल मेला लगता है।
६ जटाशकर-छतरपुर राज्य में विजावर निकट है। आसपास विजावर राज्य है । दो प्रपात है और सुन्दर छोटे-छोटे कुण्ड । उनके जल मे चर्मरोग शोधन की शक्ति है। शिवजी का स्थान है। पुरातन है। बुन्देलखण्ड मे इसकी वडी मानता है।
७ भीमकुण्ड-विजावर राज्य मे विजावर से वीस मील दक्षिण की ओर है। पहाड मे गुहा है, जो १६५४ ८५ फुट है । वीच में कोई पत्थर के खम्भे नही है। उसमे जाने को अच्छा सोपान है । अगाध जल भरा है। सौ फुट तक स्पष्ट दिखाई देता है । जल वडा हल्का और स्वास्थ्यप्रद है। सक्रान्ति को मेला लगता है। उसके कारण यहाँ पर सक्रान्ति को ही 'वुडकी' कहते है।
(३) जैन-तीर्थ बुन्देलखण्ड में, विशेषकर विजावर राज्य में, जैन-मतावलम्बी बहुत बडी संख्या में है। प्रतीत होता है कि जब हिन्दुओ ने जैनो के साथ सद्व्यवहार नहीं किया तो वे इधर जगलो मे आ गये । अथवा यह उनके वशज है, जो बहुत काल से यही थे और पाठवी शताब्दी के पुनरुत्थान से अप्रभावित रहे।
(क) सोनागिरि-दतियाराज्य मे जी० आई० पी० का स्टेशन है। वहां पर पुराने और नये मन्दिरो का पर्वत पर वाहुल्य है। धर्मशाला है । सहस्रो जनयात्री प्रति वर्ष श्रद्धाजलि समर्पित करने आते है।
(स) द्रोणगिरि-(सैधया) विजावर राज्य मे छतरपुर सागर रोड पर मलहरा से पूर्व की ओर छ मील पर है । चन्द्रभागा सरिता, जिसका वर्तमान नाम 'काठन' है, अनवरत प्रवाहित रहती है। एक पर्वत को घेर लिया है। एक ओर से एक शाखा दूसरी ओर से दूसरी पा मिलती है। अद्भुत प्राकृतिक दृश्य है । पर्वत पर जैन मन्दिर है । नीचे जागीरदार साहब की गढी, धर्मशाला और पाठगाला है। वयालीस ग्रामो के प्रशस्त प्रदेश को इधर 'दीन' कहते है, जो द्रोण का अपभ्रश है। द्रोणाचार्य को यह गुरुदक्षिणा में मिला था। उनकी यह भूमि है । यदि यह सत्य है तो द्रोणगिरि के पुरातन होने में सन्देह नही।
(ग) पपौरा--ओरछा राज्य की वर्तमान राजधानी टीकमगढ से तीन मील पूर्व की ओर है। दिगम्बर जैनो के ७५ मन्दिर है। मीलो से दीखते है। यहाँ पर १३वी से अब तक भिन्न-भिन्न शताब्दियो के शिलालेख मिलते है । अलग-अलग प्रकार की प्रस्तरकला के अच्छे उदाहरण है।
(घ) प्रहार-ओरछा राज्य में है । शान्तिनाथ की यहाँ अठारह फुट की बडी ही मनोज्ञ मूर्ति है। परमद्धिदेव चन्देल नरेश के काल में स० १२३७ वि० मे वह स्थापित हुई थी। मूर्ति दर्शनीय है । वहाँ पर ढाई-तीन सो छोटी-बड़ी मूर्तियो का सग्रह है। प्राकृतिक छटा अद्भुत है।