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बुन्देलखण्ड के दर्शनीय स्थल
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(ड) अन्य जैन तीर्थ - नयनगिरि, चन्देरी, देवगढ, कुण्डलपुर, पवा, वालावेट, बजरगगढ, पराई, सेरीन तथा खजुराहा आदि है ।
(४) अन्य दर्शनीय स्थान
१ विजावर के दर्शनीय स्थान-विजावर वन प्रधान देशी राज्य है । यहाँ प्रकृति ने अपरिमित वरदान दिया है। (क) करैय्या के पाण्डव - पांच सतत् प्रवाहित सरिताएं एकत्र होकर एक पहाडी श्रृंखला से टकराती है । उसे पार न कर सकने पर अन्दर समा जाती है । फिर कई मील के बाद निकलती हैं । दृश्य अनुपम है । (ख) सलैय्या के पाण्डव पर्वत पर प्रकृति के विलकुल गोल कटे हुए कूप है। उनमे अगाध जल रहता है । फिर जल लोप सा हो जाता है । श्रनतर एक प्रपात वन कर गिरता, वहता श्रौर लुप्त होता है । एक पेड की जड मे जल निरन्तर वहता है श्रीर केतकी, केला को पानी देता है ।
( ग ) घोघरा -- एक प्रपात है । फिर दूसरा प्रपात है, उससे झरना वहता है । उसकी कगार में गुहा है । वहाँ प्राचीन चित्रकारी है। कही वूद-जूद पानी टपकता है। कही पर्वत के शीर्ष पर अज्ञात स्थान से आने वाले जल का छोटा कुण्ड हैं । कही पर चन्देलकाल के पापाण के बँधे वांवो के तडाग है, जहाँ पक्षी क्रीडा करते है । सागौन, तेंदू, अचार, महुआ प्रोर सेजे के जगल है । उनमे तेंदुआ, रोछ, साभर, चीतल स्वच्छन्द विचरण करते है । एक ओर धमान और दूसरी ओर केन वहती है ।
२ झांसी का बेतवा का बाँध - छतरपुर पन्ना के मार्ग मे वमीठा मे बारह मील पर दर्शनीय स्थल है । 3 महेबा - छत्रसाल महाराज की समाधि और उनकी महारानी की समाधि का स्थान ओरछा राज्य की तारा तहसील मे है ।
४ वरुग्रासागर — प्राकृतिक दृश्यों के लिए अक्षय कोष है । वहाँ के किला, तालाव, प्रपात, गुप्त झरना और उपवन दर्शनीय है ।
५ जगम्मनपुर का पंचनदा -- यहाँ पर पाँच नदियो का सगम कजीसा ग्राम पर होता है। अति रमणीक
स्थान है ।
६ गढ़कुडार --श्रीयुत वृन्दावनलाल जी वर्मा के 'गढकुडार' उपन्यास के पात्रो के क्रीडास्थल का श्राधार, बुन्देली के पूर्व के खगार ( खड्गहारा) का मुख्य स्थान । पुराना गढ झांसी के निकट है ।
७ पन्ना के अन्य स्थान —- वृहत्पतिकुंड भरना, हीरो की खदान, बल्देव जी का मन्दिर ।
८ सामरिक गढ़ — सामरिक दृष्टि से झांसी, दतिया राज्यान्तर्गत सेउडा और समथर के मध्यकालीन गढ़ ar कुछ अच्छा में अब भी विद्यमान है । दर्शनीय है । झाँसी का किला केवल शिवरात्रि को जनता के लिए खोला जाता है ।
यह है हमारा बुन्देलखण्ड, जहाँ प्रागैतिहासिक युग में श्रायं श्रनार्य जातियो मे सघर्ष हुआ और भगवान राम - चन्द्र के वनगमन के विशिष्ट स्थान अव भी श्रद्धालु नर-नारियो के तीर्थं वने है । यही के प्रवल प्रतापी, प्रचड चेदि - नरेश शिशुपाल ने महाराज युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में विप्लव खडा कर दिया था और भगवान श्रीकृष्ण को उसे समाप्त करना पडा था। इसी भूमि मे गुप्तकालीन देवगढ प्रोर चन्देलकालीन खजुराहो के अतिरिक्त मौर्य, कण्व, शुग, कुशानकाल के स्मारक भी टीलो और वनो मे विद्यमान होगे । उत्तुग पर्वतमालाओ, सघन वनो, निरन्तर निर्मल जल वाहिनी सरितायो, पर्वतीय वर्षाकालीन अल्प जीवी करनो, भिन्न-भिन्न वर्ण-रस प्रभाव वाली भूमियो के 'प्रदेश में बहुत कुछ दर्शनीय है, जो मध्य युग की सभ्यता और संस्कृति को सुरक्षित रख सका है ।' बिजावर ]
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'इस लेख के लिखने में कतिपय लेखो से सहायता ली गई है । उनके लेखकों का हम आभार मानते हैं ।