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________________ इतिहास का शिक्षण २७५ का इतिहास, यह नव निश्चित हो जाने चाहिए। इस कठिनाई के कारण कितने ही इतिहास-मशोधक इतिहास को मर्यादा भूतकाल के प्रवाह में घटनामो को निर्णत कर देने के लिए आगे रखने है। इतने मात्र ने इतिहास-विज्ञान की अनुमान-प्रक्रिया अन्यान्य विज्ञानी की प्रक्रिया में किस प्रकार भिन्न होती है, इसका अन्दाज नहीं हो पाता, पर काल-प्रवाह में वन्नुओ के परिवर्तन को यथार्थ रूप में देखने की मनोवृत्ति पैदा हो जाती है। इस प्रकार भूमिति के प्रमेयो मे जो अनुमान-प्रक्रिया घटित हो या भौतिक विज्ञानो के गणितबद्ध कार्य कारणादि मवधो के ग्रहण में जो अनुमान-प्रक्रिया मस्कारित हो उसमे भिन्न प्रकार को अनुमान-पत्रिया इतिहास को घटनाएं निश्चित करने में-उसे प्रवाह-बद्ध करने मे-और उनके आवार पर व्यक्तियो तया नम्याओं को लाक्षणिकना का ग्रनुमान करने में मस्कारित होती है। जैसा कि मैं ऊपर बह चुका है, इतिहास का विषय मिखलाते समय इन प्रकार की मनोवृत्ति विद्यार्थी में उत्पन्न हो यह उमकी घटनाओं के ज्ञान की अपेक्षा अविक महत्त्व को वात है। इस प्रकार शिक्षा पाये हुये विद्यार्थी मे दुनिया को समझने की वस्तु-नत्त्व को पहचानने की-यक्ति पैदा होती है। वस्तुतत्त्व को, जिम अनेक पहलू है, पूर्णन्य मै समझने के लिए अनेक दृष्टियां आवश्यक है । इतिहास-दृष्टि भी इनमे एक है और प्रगति को अपना लक्ष्य माननेवाले व्यक्तियो के लिए उमका शिक्षण अत्यन्त आवश्यक है। इतिहास मिखलाने का उद्देश्य चरित्र-निर्माण और गष्ट्रीय अभिमान जाग्रत करना है, अयवा क्या? ऐसे प्रश्नो पर दिनारभय मे इस लेख में विचार करना सभव नहीं है, पर इतना तो निश्चय है हो कि सत्य ममभने मे अयवा सत्य ननझने की इच्छा ने प्रेरित मनोव्यापार को शिक्षा से चरित्र स्वय ही वन जाता है और राष्ट्र अभिमान अपने आप जास्त हो उठना है। लेनलाई और नाइनोवो (Langloss and Seignobos) ने अपनी इतिहाम शास्त्र प्रवेगिका के ३२० मे ३२२ तक के पृष्ठों में इतिहास मोवने, मिवलाने तथा उनका सगोवन करने का मुख्य लाभ निम्नलिखित गन्दो में बतलाया है "इनिहाम का मुख्य गुण यह है कि वह मानसिक मस्कार के निर्माण का एक माधन होता है। ऐमा भिन्नभिन्न प्रकार ने होता है। प्रथम तो यह कि ऐतिहासिक अनुसन्धानोको पद्धति का अभ्यास चित्त को ग्रारोग्य प्रदान करता है और वोजो पर महज-विश्वास (Credulity) कर लेने की मानमिक वृनि को दूर कर देता है। दूसरे इतिहास नाना प्रकार के समाजो का दिग्दर्शन करा कर हमें इस बात के लिए तैयार करता है कि हम भिन्न-भिन्न प्रकार की प्रथायो को समझ सकें और उन्हें निभा सकें। इतिहास हमें यह भी दिखाता है कि समाज में प्राय परिवर्तन होते रहते है और परिवर्तन के भय को हमारे हृदय मे दूर कर देता है। अन्तिम लाभ यह कि भूतकालीन विकामो के चिन्नन से हमें वह दृष्टि प्राप्त होती है, जिससे हम यह वात भलोभाति समझ सकते हैं कि स्वभाव-परिवर्तन तया नवीन पीडियो के पुनरुत्यान ने किस प्रकार प्राणिशास्त्रही वदल जाता है। इसमे हम जीव-विज्ञान के नियमो का सामाजिक विकास के नियमों के माथ तारतम्य वैठाने के प्रलोभन से वच जाते है । इतिहास से हमें यह भी पता चल जाता है कि मामाजिक विकास का कारण वही चीजें नहीं होती, जिनमे जीवो का विकास होता है।" भृगु ऋषि अथर्ववेद में कहते है कालो अश्वो वहति सप्तरश्मि सहस्राक्षो अजरो भूरिरेता । तमारोहन्ति कवयो विपश्चित. तस्य चक्रा भुवनानि विश्वा ॥ अर्थात्-सहन्त्र नेत्रो वाला नित्य युवा, अति प्रकाशमान, मप्न प्रकार को लगामो (किरणों) वाला काल रूपो अश्व चलता ही रहता है और जानी कविजन उस पर सवार होते है। समूचा विश्व उस अश्व के लिए भ्रमण मार्ग है। उछल-कूद करने, काल-अश्वके ऊपर सवार होने के लिए जानी कवि वनना पडता है। इतिहास का ज्ञान भी ऐमा ही कौशल प्रदान करता है। अहमदाबाद]
SR No.010849
Book TitlePremi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremi Abhinandan Granth Samiti
PublisherPremi Abhinandan Granth Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size34 MB
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