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________________ २७४ प्रेमी-अभिनंदन-प्रय चाहिए कि साहित्य, गणित एव भौतिक ज्ञान आदि मे इतिहास में कितनी भिन्नता है और कितना साम्य । इस लेख मे मै इतिहास का थोडा सा दिग्दर्शन शिक्षको के उपयोग के लिए करा देना उचित समझता हूँ। अग्रेजी शब्दकोष में हिस्ट्री' शब्द देखने मे मालूम होता है कि वह ग्रीक शब्द 'हिम्टोरिया' (Historia)का नद्भव है । उमका अर्थ है 'तलाग', 'खोज' (Inquiry)। अनुमधान (Research), खोज (Exploration)तया सूचना (Information)पर्याय इनसाइक्लोपीडिया व मोगल साइन्सेज़ में दिये है। वाद में गोध-वोज के परिणामो के लिए भी इस शब्द का प्रयोग होने लगा है । इसमे थोडा भिन्न जर्मन शब्द 'गैशिष्टे' (Geschichte) है, जो 'गेशेरेन' (Gescherhen=to take place, to happen)धातु म बना है । उन्नीसवी शताब्दी में 'गशिप्टे' शब्द 'मानव कृत वास्तविकतारोका मग्रह और उनका विकास' (Collection of human facts and their evolution) के अर्थ में प्रयुक्त होता था। ममान अर्थ में व्यवहृत होने पर भी 'हिस्ट्री' और 'गेशिष्टे' की ध्वनि मे वडा अतर है। 'हिस्ट्री' 'मन जिमे पैदा करे वह इस बात पर जोर देती है जव कि गेशिष्टे का जोर घटना (event) पर होता है। जोहो, इतना तो स्पष्ट ही है कि पाश्चात्य परम्परा के अनुसार हिस्ट्री व गेगिष्टे शब्द प्रमाण-व्यापार के द्योतक है, कल्पना-न्यापार के नही। विज्ञान में प्रमाण-वृत्ति की आवश्यकता होती है और हम दृष्टि ने इतिहास भी विज्ञान की कोटि में आ जाता है। लेकिन विज्ञान के अनुसन्धान तथा इतिहास के अनुसन्धान में वटा अन्तर है। भौतिक आदि विज्ञानो में अनुमन्धान-कर्ना पदार्थ को प्रत्यक्ष देखना है, उसके ऊपर प्रयोग करता है और अनेक तत्वो तथा तत्व-मवों को खोज निकालता है। अर्थात् उमका ज्ञातव्य विषय उसके सामने रहता है, लेकिन इतिहासकार जिस विषय को जानना चाहता है वह उसके मामने नहीं होता। वह न तो उमका पृथक्करण कर सकता है और न उसके ऊपर प्रयोग ही कर मकना है। इतिहासकार का पदार्थ काल मे है, स्थल में नहीं । फिर भी उसे स्थलकाल विशिष्ट पदार्थ का ययार्थ जान प्राप्त करना ही होता है। उसके लिए स्थल मे तो केवल अवशेष मात्र ही है। अर्थात पदार्यों का अन्तिम कालरूप उमके ममक्ष वर्तमान में विद्यमान होता है । इस अन्तिम काल रूप के आधार पर भृतकालीन स्थलकाल विशिष्ट स्पो का उमे अनुमान करना होता है। कहने का तात्पर्य यह कि इतिहास की वास्तविकता मानने में भी विशिष्ट तत्वदृष्टि अभिप्रेत है। इतिहास का पदार्थ अनुमान से फलित करने का है। अत इतिहास विज्ञान की पहली क्रिया वर्तमानकालीन पदार्थ स्थिति के द्वारा उनके भूनकालीन तत्वो की खोज करना है। इस दृष्टि मे भू-स्तर विद्या आदि इतिहास के प्रकार है। पर यहाँ पर हम मनुप्य में प्रादुर्भूत पदार्थों तक ही इनिहाम मना को सीमित करते है। इसलिए वर्तमान कालीन पदार्थों को अवशेप रूप मान कर उन्हें भूत कालीन पदार्थों के चिह्न बनाने का वैज्ञानिक कौगल इतिहास मगोषक को सर्वप्रथम मुघटित करना होती है। वेर व फेने के कथनानुसार "प्राचीन तथ्यो के केवल अवशेप स्मारक और कागन-पत्तरही शेप रह जाते है। ये स्मारक, जिनस इतिहामन को अपने विषय का ज्ञान प्राप्त करने में सहायता मिलती है, मव प्रकार के होते है। इसी से कहा जाता है कि इतिहाम के माधन विभिन्न प्रकार के होते है।" कहने का मतलव यह कि विविध प्रकार के अवगेपी के आधार पर इतिहासकार का प्रथम कार्य वास्तविकता को निश्चित करना है। वर्तमान कालीन तथ्यों के अनुसार पदार्थ इतिहास की घटनाएं बनती है। ऐसी घटनाग्रा का समूह सिद्ध होने के पश्चात् उन्हें कालत्रम की शृखला में ग्वाला जाता है। अधिक उपयुक्त शब्दों में कहा जाय तो काल-प्रवाह में घटनायो म एकरूपता या जाने के वाद उमके आधार पर अन्य नियमो का अनुमान किया जाता है। ऐसे अनुमाना में से एक विशिष्ट प्रकार की तन्वदृष्टि फलित होती है । इसे इनिहामप्रदत्त तत्वदृष्टि कह सकते है। इस प्रकार की नत्वदृष्टि प्राप्त विश्व इतिहाम लिम्बने के पूर्व प्रादेगिक इतिहाम, भूगोल के प्रदेश काल के विभाग, वन्नुओ के अशो 'सातवा भाग पृष्ठ ३५७ इन्साइक्लोपीडिया ऑव सोशल साइन्सेज ७वा भाग पृष्ठ ३५७ । 'इन्माइक्लोपीडिया प्राव सोशल साइन्सेज़ भाग ७, पृष्ठ ३५८ ।
SR No.010849
Book TitlePremi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremi Abhinandan Granth Samiti
PublisherPremi Abhinandan Granth Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size34 MB
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