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भारत में समाचार-पत्र और स्वाधीनता
श्री अम्बिकाप्रसाद बाजपेयी आजकल जिसे समाचार पत्र कहते है, अगरेजो के यहाँ आने के पहले उसका अस्तित्व नही था। पहला पत्र जो इस देश मे निकला, वह भी अंगरेजी मे और अंगरेज़ नेही निकाला, क्योकि अंगरेज़ विचारस्वातन्त्र्य के पक्षपाती ही नही है, वे साधारणत अनाचार के विरोधी भी है । वे जानते है कि अनियन्त्रित राजसत्ता अनाचार की जननी है और अनाचार पर प्रकाश डालने के लिए समाचारपत्र की आवश्यकता है तथा जवतक अनाचार पर प्रकाण नही पडता तवतक अन्याय-अत्याचार का अन्धकार भी दूर नहीं होता। ऐसे विचारो की प्रेरणा से जेम्स ऑगस्ट हिकी ने १७८० में 'बंगाल गैजेट' वा 'कैलकटा जेनरल ऐडवरटाइजर' नामक पत्र निकाला था। इन्होने अपने प्रकागन-पत्र का उद्देश्य इस एक वाक्य मे ही बता दिया था-"I take a pleasure in enslaving my body in order to purchase freedom for my mind and soul " अर्थात्-"मुझे अपने मन और आत्मा के निमित्त स्वतन्त्रता मोल लेने के लिए अपने शरीर को दास बनाने मे आनन्द आता है।"
उस समय वारेन हेस्टिंग्ज बगाल के गवर्नर-जनरल थे और इतिहास के विद्यार्थी जानते है कि वे कैमे शासक थे। हिकी कागैजेट साप्ताहिक था और दो तावो पर निकलता था, जिसका प्रत्येक पृष्ठ पाठ इच चौडाऔर बारह इच लम्बा होता था। जैसा उसके नाम से प्रकट है, वह समाचारपत्र की अपेक्षा विज्ञापन-पत्र अधिक था, परन्तु उसमें विज्ञापन हो नही रहते थे, विशिष्ट पुरुषो की प्राइवेट बातो पर टिप्पणियाँ भी रहती थी, जिनका मुख्य लक्ष्य वारेन हेस्टिग्ज ही होता था। हिकी बडे साहसी थे। इसलिए उन्होने अपनी नीति के विषय में पत्र पर छाप रक्खा था
"A weekly political and commercial paper open to all paitics and influenced by none" अर्थात्-"एक साप्ताहिक राजनैतिक और व्यापारिक पत्र, जो खुला तो सव पार्टियो के लिए है, पर प्रभावित किसी से नही है।" हम समझते है कि हिकी के दोनो सिद्धान्त आज भो समाचार-पत्रो के सम्पादको और सचालको के सामने रहने चाहिए। हमारी समझ से आज के प्रलोभन उस समय से अधिक है। हिकी ने अपने सिद्धान्तो की रक्षा में जेल काटी और घाटा भी उठाया। __ - कलकत्ते की देखादेखी मद्रास और वम्बई के यूरोपियनो ने भी पत्र निकाले, परन्तु पत्रो के सचालन और सम्पादन में मानसिक, शारीरिक तथा आर्थिक हानि उठाने वालो मे अग्रणी कलकत्ते के ही अंगरेज़ रहे। देशी भाषा का पहला पत्र भी अंगरेजो ने ही निकाला, पर ये व्यापारी न थे, वैपटिस्ट मिशनरी थे। सीरामपुर के बैपटिस्ट मिशनरी केरी और मार्शमैन ने ईसाई धर्म के प्रचारार्थ बंगला मे कई पत्र निकाले। १८१८ में मासिक 'दिग्दर्शन' और 'समाचारदर्पण' नाम के पत्रो को जन्म इन मिशनरियो ने हो दिया। जोशमा मार्शमैन 'ममाचारदर्पण के सम्पादक थे। इसी समय 'आत्मीय सभा के सदस्य हरुचन्द्रराय और गङ्गाकिशोर भट्टाचार्य के सम्पादकत्व मे बँगला मे 'बगाल गैजेट' निकला। यह 'आत्मीय सभा' ब्राह्मसमाज का पूर्वरूप जान पडती है, क्योकि सम्पादकद्वय ब्राह्मसमाज के सस्थापक राजा राममोहन राय के मित्र थे।
इस समय मुसलमानी अमलदारी का अन्त हो चुका था और अंगरेजी शासन की जड जम रही थी। आज जैसा अंगरेजो का वोलवाला है, वैसा ही मुसलमानी राज में फारसी का था। लोग शासको से सम्पर्क रखने के लिए फारसी पढते थे, इसलिए फ़ारसी एक प्रकार से उस समय के शिक्षित-समाज की अखिल भारतीय भाषा थी। राजा राममोहन राय ने अपने विचारो का अखिल भारतीय प्रचार करने के अभिप्राय से फारसी मे 'मोरात-उल-अखबार' निकाला था। कलकत्ते में अंगरेजी, बंगला और फारसी के ही पत्र प्रकाशित नहीं होते थे, पहला हिन्दी पत्र भी यही से निकला