________________
भारत में समाचार-पत्र और स्वाधीनता
१८३ था। इसका नाम 'उदन्त मार्तण्ड' था। इसके सम्पादक और प्रकाशक युगुलकिशोर शुक्ल थे, जो सदर दीवानी अदालत में वकालत करते थे। यह साप्ताहिक पत्र था और इसकी पहलो सख्या ३० मई १८२६ को प्रकाशित हुई थी। इसका मासिक चन्दा दो रुपये था। इसी समय कलकत्ते से 'नामे जहांनुमा' नाम का जो फारसी पत्र निकलता था, उसे सरकार से सहायता मिलती थी। 'मार्तण्ड' के सम्पादक समझते थे कि उन्हें भी सहायता मिलेगी, पर जब न मिली और अपने वल पर वे पत्र न चला सके तो ४ दिसम्बर १८२७ को उसे वन्द कर दिया।
वम्बई और मद्रास प्रेसीडेन्सियो का महत्त्व यद्यपि वगाल के समान न था, तथापि इनमें भी स्वतन्त्र विचार के व्यापारी अंगरेज़ थे और इन्होने समाचारपत्रो को जन्म दिया था। वम्बई से १७८६ मे 'वाम्बे हेरल्ड' और एक वर्ष वाद 'वाम्बे कोरियर' निकला, जिसका उत्तराधिकारी आज 'टाइम्स ऑव इडिया' है। 'कोरियर' के सचालक व्यवसायकुगल थे। इसलिए अंगरेजी में पत्र निकाल कर भी गुजराती भाषा-भाषी व्यापारियो को आकर्षित करने के लिए विज्ञापन गुजराती में निकालते थे। मद्रास में हम्फ्रीज़ ने १७९५ में 'मद्रास हेरल्ड' निकाला था। वम्बई मे गुजराती के पहले पत्र पारमियो ने प्रकाशित किये थे, पर इनका उद्देश्य पचागो की गणना का वाद-विवाद था। इसलिए ये बहुत दिन नही चले । अत 'मुम्बई वर्तमान' को ही गुजराती का पहला पत्र कहना चाहिए। यह १८३० में साप्ताहिक रूप से निकला था और साल भर वाद ही अर्द्ध-साप्ताहिक हो गया। १८३१ मे सनातनी पारसियो का मुखपत्र 'जामे जमशेद' निकला। देशी भाषा का इतना पुराना पत्र शायद कोई नहीं है। १८५१ में दादाभाई नवरोजी के सम्पादकत्व में "रास्त गुफ्तार' निकला।
१८३१ तक उर्दू का कोई पत्र नहीं निकला था। गोलोकवासी वावू वालमुकुन्द गुप्त ने 'भारतमित्र' में लिखा था कि आवेहयात' मे मौ० मुहम्मदहुसैन आजाद का कथन है कि '१८३३ ईस्वी मे उर्दू का पहला अखवार दिल्ली में जारी हुआ' और आजाद साहव के अनुसार 'उनके पिता के कलम से निकला।' पर डा० कालीदास नाग ने समाचारपत्रो के इतिहास का जो सग्रह प्रकाशित किया है, उसमें लिखा है कि १८३७ में सर सैयद अहमद खां के भाई मुहम्मदखां ने उर्दू में पहला अखवार निकाला, जिसका नाम 'सैयदुल अखबार' था। १८३८ में 'देहली अखबार' प्रकाशित हुआ और इसके बाद ही 'फवायदे नाजरीन' और 'कुरान-उल-समादीन' नाम के दो उर्दू अखवार हिन्दुओ द्वारा सम्पादित और प्रकाशित होने लगे। - हिन्दी का दूसरा पत्र भी कलकत्ते से ही निकला। इसका नाम 'वनदूत था। यह वंगला, फारसी और हिन्दी तीन भाषाओं में प्रकाशित होता था। प्रथम अक ६ मई १८२६ को निकला था। इसके सम्पादक राजा राममोहन राय के मित्र और अनुयायी नीलरतन हलदार थे। यह राजा का ही पत्र था। इसके बहुत दिनो वाद तक हिन्दी का कोई पत्र कलकत्ते से नहीं निकला। हिन्दी का तीसरा पत्र 'बनारस अखबार' समझा जाता है, जिसे राजा शिवप्रसाद 'सितारे हिन्द' ने १८४४ मे जारी किया था। बनारस से और भी कई पत्र निकले थे, जिनमें एक 'सुधाकर' भी था, जिसके नाम पर प्रसिद्ध ज्योतिषी म० म० सुवाकर द्विवेदी का नामकरण हुआ था। इसे तारामोहन मित्र नामक वगाली सज्जन सम्पादित करते थे। भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के कारण बनारस बहुत दिनो तक हिन्दी का केन्द्र रहा, क्योकि ये लिखते और लिखाते ही नहीं थे, लेखको को धन भी देते थे। दिल्ली, अल्मोडा, लाहोर, कानपुर, मेरठ, अलीगढ, मिर्जापुर, कलकत्ता आदि अनेक स्थानो से हिन्दी पत्र निकले। ये वहुघा हिन्दी का ही आन्दोलन करते थे और उदार भाव व्यक्त करते थे।
__ समाचारपत्रो के प्रतिवन्ध दूर करने में अंगरेज़ मम्पादको और मचालको ने जो त्याग और कष्ट-सहिष्णुता दिखाई है, उसके लिए समाचार-पत्र उनके सदा कृतज्ञ रहेगे। भारतवासियो ने जेलयातना पचास वर्ष पहले नहीं भोगी थी, पर अंगरेज सम्पादको ने जेल ही नही काटी, वे निर्वासित हुए और उनकी सम्पत्ति भी जब्त हुई। फिर भी अपने आदर्श का उन्होने त्याग नहीं किया। पहले सम्पादक हिकी थे, जो जेल गये और जिनको सरकार की इच्छा के विरुद्ध पत्र-प्रकाशन के कारण घाटा भी सहना पडा। दूसरे विलियम डुबानी थे, जिन्होने अपने 'इडियन वर्ल्ड'