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प्रेमी-अभिनदन-प्रथ ११२
कम्पनी की राजनैतिक सत्ता स्थापित करने मे तो वेलेजली तथा उनके पूर्ववर्ती शासको ने पूर्ण योग दिया था, किन्तु अभी तक कम्पनी के कर्मचारियो तथा उसके अपने शासन की ओर किसी ने ध्यान न दिया था। शुरू मे कम्पनी के कर्मचारियो की नियुक्ति डाइरेक्टरो के सम्बन्धियो में से होती थी। इन कर्मचारियो की सचाई और ईमानदारी में उन्हें पूरा-पूरा भरोसा रहता था। कोई काम बिगड जाने पर कर्मचारियो को केवल जुर्माना भर देना पड़ता था। नियुक्ति के समय केवल उनके व्यापारिक ज्ञान की परीक्षा ली जाती थी। परन्तु कुछ समय के वाद डाइरेक्टरो की नीति बदल गई। अब वे चौदह-पन्द्रह वर्ष के उन युवको को भारत भेजने लगे जो हिसाव लगाने में निपुण होते थे या अच्छी तरह पढ-लिख सकते थे। कर्मचारियो के भारतीय भाषाओ और आचार-विचार-सम्बन्धी ज्ञान की ओर भी उन्होने अधिक ध्यान न दिया। शिक्षा भी उनकी अपूर्ण रहती थी। कम्पनी के सचालको की यह नीति उस समय तक बनी रही जवतक कम्पनी प्रधान रूप से एक व्यापारिक सस्था मात्र थी। किन्तु इससे कर्मचारियो मे अनेक नैतिक और चारित्रिक दोष उत्पन्न हो गये, जिससे अंगरेज़ जाति की प्रतिष्ठा पर कलक का टीका लगने की आशका थी।
शासन-सूत्र ग्रहण करते समय वेलेजली ने कर्मचारियो की शिक्षा, योग्यता, सदाचरण और अनुशासन की देख-रेख के प्रबन्ध के अभाव को साम्राज्य के हित के लिए घातक समझा। कम्पनी की उत्तरोत्तर बढती हुई राजनैतिक शक्ति के अनुरूप वे उन्हें चतुर और कूटनीतिज्ञ शासक बनाना चाहते थे। उन्हे कर्मचारियो की वणिक वृत्ति ब्रिटिश साम्राज्य की प्रतिष्ठा के सर्वथा विरुद्ध जंची। अतएव उन्होने उनके पाश्चात्य राजनीति एव ज्ञान-विज्ञान के साथ भारतीय इतिहास, रीति-रस्मो, कायदे-कानूनो और भाषाओ के ज्ञान की सगठित व्यवस्था के लिए १८०० ई० मे फोर्ट विलियम कॉलेज की स्थापना की।
अन्य विषयो की शिक्षा व्यवस्था के साथ-साथ कॉलेज मे हिन्दुस्तानी भाषा तथा साहित्य के अध्ययन की आयोजना भी की गई। डॉ. जॉन वीर्यविक् गिलक्राइस्ट (१७५६-१८४१ ई०) हिन्दुस्तानी विभाग के अध्यक्ष नियुक्त हुए। उनकी अध्यक्षता में अनेक मुशी और पडित रक्खे गये।
यद्यपि वेलेजली की कॉलेज-सम्वन्धी वृहत् योजना कोर्ट के डाइरेक्टरो द्वारा, गवर्नर-जनरल की आर्थिक और राजनैतिक नीति से मतभेद होने के कारण अस्वीकृत ठहरी और २७ जनवरी, १८०२ ई० के पत्र में कॉलेज तोड देने की आज्ञा के बाद केवल 'वगाल सेमिनरी' (१८०५ के लगभग प्रारम्भ से) का सचालन होता रहा, तो भी भारतीय साहित्य और भाषाओ के इतिहास में कॉलेज का महत्त्वपूर्ण स्थान है। कॉलेज की स्थापना राजनैतिक ध्येय को लेकर अवश्य हुई थी, किन्तु घुणाक्षर न्याय से भाषा, साहित्य, शिक्षा, ज्ञान-विज्ञान, नवीन विषयो के अध्ययन के सूत्रपात आदि की दृष्टि से भारतवासियो का हित-साधन ही हुआ। भाषा और साहित्य के क्षेत्र में, प्रेस की सहायता से, ऐसा सगठित प्रयास पूर्व समय में कभी न हुआ था। कॉलेज के कारण ही देश के विभिन्न भागो के विद्वान् वहां एकत्रित हुए और कलकत्ता एक प्रधान साहित्यिक केन्द्र बना। प्राचीन साहित्य और भाषाओ के पठन-पाठन के साथसाथ आधुनिक साहित्य और भाषाओ की उन्नति की ओर भी ध्यान दिया गया। कॉलेज के पाठ्यक्रम का यह द्वितीय पक्ष ही विशेष महत्त्वपूर्ण है।
कॉलेज की स्थापना के पूर्व, अन्य अनेक यूरोपीय विद्वानो के अतिरिक्त, गिलक्राइस्ट भी हिन्दुस्तानी के पठनपाठन में सलग्न थे। १७८३ ई० में वे ईस्ट इडिया कम्पनी के सरक्षण में सहायक सर्जन नियुक्त होकर भारतवर्ष पाये थे। उस समय कम्पनी फारसी भाषा का प्रयोग करती थी, किन्तु गिलक्राइस्ट ने उसके स्थान पर हिन्दुस्तानी का चलन ही अधिक पाया। गवर्नर-जनरल की आज्ञा से तत्कालीन बनारस की जमीदारी में रहकर उन्होने हिन्दुस्तानी का अध्ययन भी किया और तत्पश्चात् अनेक ग्रन्थो की रचना की। कम्पनी के कर्मचारियो में उन्होने हिन्दुस्तानी का प्रचार किया। १७९८ ई० में जब वेलेजली कलकत्ता पहुंचे तो उन्होने गिलक्राइस्ट के परिश्रम की सराहना की और उनके अध्ययन से पूरा लाभ उठाना चाहा। उन्होने वैतनिक रूप से गिलक्राइस्ट तथा कुछ मुशियो को हिन्दुस्तानी और फारसी भाषामो की शिक्षा के लिए रक्खा। इस सस्था का नाम 'ऑरिएटल सेमिनरी' रक्खा गया। सरकारी