________________
[ ५६ ]
धर्मामृत
(५१)
राग केदारो-तीन ताल
में कोनो नही तो बिन ओरसुं राग ॥ टेक ॥
दिन दिन वान चढे गुन तेरो, ज्युं कंचन पर भाग । ओरन में हे कषायकी कलिका, सो क्युं सेवा लाग ॥ में० १ ॥
राजहंस तुं मानसरोवर, ओर अशुचि रुचि काग | विषय भुजंगम गरुड तुं कहियें, ओर विषय विषनाग ॥ में० २ ॥
ओर देव जल छीलर सरिखे, तुं तो समुद्र अथाग | तुं सुरतरु जगवंछित पूरन, ओर तो सुको साग ॥ में कीनो ० ३ ॥
तुं पुरुषोत्तम तुहि निरंजन, तुं शंकर वढ भाग । तुं ब्रह्मातुं बुद्धि महाचल, तुं हि देव वीतराग ॥ में कौनो ० ४ ॥
सुविधिनाथ तुज गुन फूलन को, मेरो दिल हे बाग | जस कहे भमर रसिक होइ तामें लीजें भक्ति पराग ॥ में० ५ ॥