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यशोविजय
राग सोहनी-तीन ताल
चिदानन्द अविनासा हो, मेरो चिदानन्द अविनासी हो ॥ टेक॥ कोर मरोर करम की मेटे, सहज स्वभाव विलासी हो।चिदानन्द०॥१॥
पुद्गल मेल खेल जो जगको, सो तो सबहि विनासी हो। पूरन गुन अध्यात्म प्रगटें, जागे जोग उदासी हो ॥ चिदा०॥२॥
नाम भेख किरियाकुं सब हो, देखे लोक तमासी हो । चिन मूरत चेतन गुन चिने, साचो सोउ संन्यासी हो॥चिदा०॥३॥
दोरो देवारकी किति दोरे, मत व्यवहार प्रकासी हो । अगम अगोचर निश्चय नय की, दोरी अनंत अगासी हो॥चिदा०॥४॥
नाना घट में एक पिछाने, आतमराम उपासी हो । भेद कल्पना में जड मूल्यो, लुब्ध्यां तृष्णा दासी हो ॥चिदा०॥५॥ धर्मसिद्धि नव निधि हे घट में, कहां ढुंढत जइ काशी हो । . जस कहे शान्त सुधारस चाख्यो,पूरन ब्रह्म अभ्यासी हो।चिदा०॥६॥