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राग बिहाग - तीन ताल
चेतन अब मोहि दर्शन दीजे ॥ टेक ॥ तुम दर्शन शिव सुख पामीजे,
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तुम दर्शन भव छीजे ॥ चेतन० ॥ १ ॥
धर्मामृत
तुम कारन तप संयम किरिया, कहो कहांलां कीजे । तुम दर्शन बिनु सब या जुठी, अन्तर चित्त न भीजे ॥ चेतन० ॥२॥
क्रिया मूढमति कहे जन केइ, ज्ञान और कुं प्यारो । मिलत भाव रस दोउ न भाखे, तुं दोनु तें न्यारो ॥ चेतन ० ॥३॥
सब में है ओर सब में नांही, पूरन रूप एकेो । आप स्वभावे वे क्रिम रमतो, तुं गुरु अरु तुं चेलो | चेतन० ||४||
अकल अलख प्रभु तुं सच रूपी, तुं अपनी गति जाने । अगम रूप आगम अनुसारे, सेवक सुजस बखाने ||चेतन० ||५||