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यशोविजय
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क्रिया बिना ज्ञान नहिं कबहुँ, क्रिया ज्ञान बिनु नांही । क्रिया ज्ञान दोऊ मिलत रहतु हे, ज्यों जल रस जल मांही ॥ प० ८ ॥
क्रिया मगनता बाहिर दीसत, ज्ञानशक्ति जस भांजे । सदगुरु शीख सुने नहीं कब हुं, सो जन जनतें लाजे ॥ १०९ ॥
तत्वबुद्धि जिनकी परनति है, सकल सूत्र की कुंची । जग जसवाद वदे उनहा को, दशा जस उंची ॥ प० १० ॥
जैन