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राग गौड सारंग-तीन ताल
धर्मामृत
क्या मगरूरी बतावे पियारे ॥ टेक ॥
अपनी कहा चलावे ॥ पि० टेक ॥
कवन देश कुण नगरी से आया, कहां तुज वास रहावे ॥ प० ॥ १ ॥
कहा जिनस तुम लाए मगरू, किस बिध काल बितावे ॥ २ ॥
कहा जाने का मकसद होगा, कैसो विचार रहावे ॥ पि० ॥ ३ ॥
चार दिनांकी चांदनी हेगी, पाछे अंधार बतावे ॥ ४ ॥
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घर घर फिरतां थारा हिं मानस, अंगुलीयां दिखलावे ॥ ५ ॥
तिनतें तुं मगरूरी छांडी, जग सम समता लावे ॥ ६॥
तो नवनिध चारित्र सहाये, ज्ञानानंद पद पावे ॥ पि० ॥ ७ ॥