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राग वसंत-तीन ताल
धर्मामृत
मेरे पिया की निशानी मोरे हाथ न आवे || मे० टेक ॥ रूपी कहुं तो रूप न दीसे, कैसे करो बतलावे ॥ मे० ॥ १ ॥
जोती सरूपी तेह विचारुं, करम बंध कैसें भावे । सिद्ध सनातन उपजन बिनसन, कैसे विचार सुहावे ॥ मे० ॥ २ ॥
वेद पुरान में नहि कहि दीसे, किण. परभाव रमावे । .. यातें चारित ज्ञानानंदी, एकहिं रूप कहावे ॥ मे० ॥ ३ ॥