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मानानन्द
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राग पसंत-तीन ताल मैं कैसे रहुं सखी, पिया गयो परदेशो ॥ मैं० ॥ टेक ॥ रितु वसंत फूली वनराइ, रंग सुरंगीत देशो ॥ १ ॥ दूर देश गये लालची वालम, कागळ एको न आयो । निर्मोही निस्नेही पिया मुझ, कुण नारी लपटायो |॥ २ ॥
वसंत मासनी रात अंधारी, कैसे विरह बुझाया । इतने निधि चारित्र पुत वल्लभ, ज्ञानानंद घर आयो ॥ ३ ॥