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अपनानन्द
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राग बिलावल, अथवा मल्हार - तीन ताल
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साधो भाइ देखो नायक माया | सा० ॥ टेक ॥
पांच जातका वेस पहिराया, बहुविध नाटक खेल मचाया ॥ सा० १ ॥
· लाख चौराशी योनि मांहे, नाना रूपें नाच नचाया । चवदह राजलोक गत कुलमें, विविध भांति कर भाव दिखाया ॥ सा०२ ॥
अब तक नायक धायो नाहिं, हार गयो कहुं कुनसें भाया । यातें निधि चारित्र सहायें, अनुपम ज्ञानानंद पद भाया ॥ सा०३ ॥